एक दिन निश्चय हुआ कि उस देश के दो तीन प्रतिष्ठित व्यक्ति मूर के साथ मछली का शिकार खेलने जायेंगे । इस कारण पूर्वरात्रि में ही खाने-पीने की यथेष्ट सामग्री डोंगी में भरी गई । वे लोग मछलियों और चिड़ियों का शिकार करने वाले थे, इसलिए उन्होंने मुझको कुछ गोली-बारूद और बन्दूक भी साथ में ले जाने की आज्ञा दी थी ।
दूसरे दिन बड़े तड़के मैंने, स्वामी की आज्ञा के अनुसार, सभी उपयुक्त वस्तुएँ ले जा कर कमरे में रख दीं । नाव को अच्छी तरह धो-धुला कर साफ करके मालिक और उनके साथिओं के आने की मैं प्रतीक्षा करने लगा । कुछ देर के बाद मालिक ने आ कर मुझसे कहा-“क्रूसो, हमारे आगस्तुक व्यक्तियों का आज शिकार के लिए आना न हुआ । वे किसी आवश्यक कार्यवश रुक गये । वे लोग आज कल रात को हमारे ही घर भोजन करेंगे, इसलिए हम भी आज मछली के शिकार में न जा सकेंगे । तुम्हीं लोग जाओ, जो कुछ थोड़ी घनी मिल जाय, लेकर शीघ्र घर लौट आना ।" वे अपने विश्वासपात्र मूर और इकजूरी नामक एक लड़के को मेरे साथ जाने की आज्ञा दे कर चले गये ।
उस समय भाग निकलने की धुन फिर मेरे हृदय में समाई ।
क्रूसो का भागना।
एक बहुत बड़ी डोगी मेरे अधीन हुई । उसे छोटा मोटा जहाज़ ही कहना चाहिए । मेरे लिए यह कुछ सामान्य सुयोग न था । जब मेरे मालिक चले गये तब मैं मछली पकड़ने का बहाना करके भागने का उद्योग करने लगा ।