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राबिन्सन क्रूसो

स्थलयात्रा की तरह जलयात्रा नहीं होती कि काम पड़ने से एक जगह दस-बीस दिन ठहर गये और काम हो जाने पर फिर आगे बढ़ने लगे। हम लोग इन सबों की सहायता करते थे परन्तु एक जगह स्थिर होकर रहने का सुभीता न था। बिना मस्तूल के जहाज़ को साथ ले चलने के कारण हम लोग पाल नहीं तान सकते थे। इससे हम लोगों का जहाज़ भी ठिकाने के साथ न चल कर उसी टूटे जहाज़ के साथ लड़खड़ाता हुआ चला। इस अरसे में उन लोगों के जहाज़ के मस्तूलों को काम चलाने योग्य ठीकठाक करके और जितनी हो सकी उतनी खाद्य-वस्तु दे कर उन्हें बिदा कर दिया। केवल वह यात्री युवक और उसकी दासी दोनों अपनी चीज़-वस्तु लेकर हमारे जहाज़ पर चले आये।

युवक की उम्र सत्रह वर्ष से अधिक न थी। वह सुन्दर, शिष्ट, शान्त और बुद्धिमान् था। माता की मृत्यु से वह बेचारा एकदम सूख गया था। इसके कई महीने पूर्व उसके पिता का भी देहान्त हो गया था। वह अपने जहाज़ के लोगों पर बहुत ही रुष्ट था। वह कहा करता था कि उन लोगों ने मेरी माँ को भूखों मार डाला है। उन लोगों ने वास्तव में किया भी ऐसा ही था, पर उसके होश हवास में नहीं, उसकी निश्चेष्ट अवस्था में यह लीला हुई थी। वे लोग चाहते तो युवक की माँ को यत्किञ्चित् आहार दे कर उसके प्राणों को अब तक बचाये रह सकते थे। किन्तु लोगों के धर्म, ज्ञान और धैर्य को क्षुधा स्थिर रहने नहीं देती। लोगों का मन भूख से अत्यन्त चञ्चल और दुर्दमनीय हो उठता है। उस समय अपना पराया सब भूल जाता है; दया, धर्म, और नोति-अनोति का ज्ञान एकदम लुप्त हो जाता है।