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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/२९१

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राबिन्सन क्रूसो।


चुपचाप खड़ा रहा । इसके बाद उसकी आँँखों से झर झर आँँसू गिरने लगे ।

मैंने पूछा-फ्राइडे, क्या तुम बाप के साथ भेंट होने की बात सुन कर रोने लगे ?

फ्रा़इडे रुद्ध-कराठ से बोला —नहीं नहीं, अब बाप से मेरी भेंट न होगी ।

मैं—यह तुमने कैसे जाना ?

फ्रा़इडे—बह बूढ़ा आदमी कभी का मर गया होगा।

मैं-"पागल कहीं का, मनुष्य के जीवन-मरण का कोई निश्चय नहीं कि कौन कब तक जियेगा और कौन कब मरेगा। मान लो तुम्हारे बाप से यहाँ भेट न हो तो न सही पर किसी से तो भेट होगी ।" फ्रा़इडे ने मेरे किले के पास के पहाड़ की ओर दिखा कर कहा –"हाँ, हाँ, वह देखो, लोगों का झुंड है । वे खड़े होकर हम लोगों की ओर देख रहे हैं।" पर मैंने किसी को नहीं देखा । फिर भी उसीकी बात पर विश्वास करके मैंने हुक्म दिया कि झण्डी उड़ा कर तीन बार तोप की आवाज़ की जाय ! आध घंटे के बाद मैंने खाड़ी के पास धुवाँ उठते देखा। तब यहाँ की बस्ती के सम्बन्ध में कोई सन्देह नहीं रहा । मैंने उसी समय एक नाव जहाज़ से पानी में उतारने को कहा। सोलह हथियारबन्द नाविक, फ्रांसवासी पुरोहित और फ्रा़इडे को साथ ले मैं नाव पर सवार हुआ । हम लोग शत्रु नहीं, बन्धु हैं,- यह जताने के लिए एक सादी पताका उड़ाते चले ।

हम लोग ज्वार के समय में रवाना हुए थे । इससे नाव एकदम खाड़ी के भीतर पहुँच गई । मेरी दृष्टि सब के