की बात है, साधारण शिक्षा भी उन्होंने उन असभ्यों को न दी। इससे वे मजबूर होकर काम करते थे, पर मन से नहीं करते थे। इस कारण, सेव्य-सेवकों में प्रीति और विश्वास का नितान्त अभाव था।
एक दिन सभी मिल कर खेती का काम कर रहे थे। एक अँगरेज़ ने असभ्य जाति के एक नौकर से कोई काम करने को कहा। वह उस काम को वैसा न कर सका जैसा उसे करने को उस अँगरेज़ ने बताया था। इससे क्रुद्ध हो कर उस बदमिज़ाज अँगरेज़ ने कमरबन्द से खंजर निकाल कर उस बेचारे दास के कन्धे पर एक हाथ जमा दिया। यह देख कर एक स्पेनियर्ड ने झट जा कर उस अँगरेज़ का हाथ पकड़ लिया। इससे वह एकदम क्रोधान्ध हो कर स्पेनियर्ड का ही खून करने पर उद्यत हो गया। इस पर सभी स्पेनियर्ड बिगड़ गये और इसी कारण अँगरेज़ों तथा स्पेनियों में एक छोटी सी लड़ाई हो गई। स्पेनियर्ड दल में अधिक लोग थे इससे अत्याचारी अँगरेज़ शीघ्र ही पराजित हो कर बन्दी हुए। तब यह प्रश्न उपस्थित हुआ कि इन दुर्दान्त पशुबुद्धियों को कौन सी सज़ा दी जाय। ये लोग जैसे उग्र, उद्दण्ड, आलसी और अपकारक हैं इससे इन लोगों को ले कर गृहस्थी का काम करना कठिन है। इन्होंने बार बार जैसा अत्याचार और विद्रोह किया है और कर रहे हैं इससे इनके साथ रहने में प्राणों को हथेली पर रख कर रहना होगा।
स्पेनियर्ड मुखिया ने कहा-यदि ये हमारे स्वदेशो होते तो इन लोगों को फाँसी दे कर कमी के इस झंझट को किनारे कर देते। जो लोग समाज-द्रोही हैं उनके दूर होने ही में समाज का मङ्गल है। किन्तु ये लोग अँगरेज़ हैं।