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राबिन्सन क्रूसो।


वस्तुओं को लेकर वे लोग बहुत उलझन में पड़े। न उनसे जाते ही बनता था और न ठहरते ही। आखिर वे लोग क्या करते। लाचार हो कर वहाँ से बिदा हुए और अपने रहने को जगह ढूँढ़ने लगे।

उन्होंने टापू के दूसरी ओर एक सुभीते की जगह ढूँढ़ ली। तीनों अँगरेज़ वहाँ घर बनाकर एक साथ रहने लगे। मारने लायक़ हथियार के सिवा उन लोगों को और किसी वस्तु की कमी न रही। इस प्रकार स्वतन्त्रता-पूर्वक उन्होंने छः मास बिताये। जब उन लोगों की गृहस्थी का कारबार जम गया तब फिर उनको शैतानी करने की सूझी। उन लोगों को जीवन-निर्वाह का यह श्रमसाध्य ढंग अच्छा नहीं लगा। उन्होंने सोचा कि असभ्य देश में जाकर दो-चार असभ्यों को पकड़ लावें और उनसे नौकर का काम लें। इस विचार को चरितार्थ करने के लिए वे लोग व्यग्र हो उठे। एक दिन उन्होंने स्पेनियों की निर्दिष्ट सीमा के पास आकर स्पनियों को एक बात सुनने के लिए पुकारा। स्पेनियर्ड जब सुनने गये तब उन्होंने अपना मतलब कह सुनाया और स्पेनियों से एक डोंगी तथा आत्मरक्षा के लिए एक बन्दूक़ उधार माँगी।

स्पेनियर्ड तो चाहते ही थे कि किसी तरह इन दुष्टों की संगति से छुट्टी मिले-"बरु भल वास नरक कर ताता, दुष्ट संग जनि देहिं विधाता।" इसलिए अँगरेज़ों के इस प्रस्ताव को उन लोगों ने सहर्ष माना। तथापि उन लोगों ने शिष्टता को जगह देकर अँगरेज़ों को बहुत तरह से समझाया कि तुम्हारा यह संकल्प बहुत ही विपद्-मूलक है। वे उस देश में जाकर या तो भूखों मरेंगे या वहाँ के निवासी नर-पिशाचों के मुँह के आहार होकर प्राण गवाँवेंगे।