की तीन डोंगियाँ और समुद्र में डूब कर मरे हुए दो असभ्यों की लाशें बही जा रही हैं।
द्वीप में असभ्यों का दुबारा उपद्रव
धीरे धीरे पाँच छः महीने बीत गये। असभ्यों के आने की कहीं कुछ भनक न पाई गई। द्वीपनिवासियों ने समझा कि या तो वे लोग द्वोप के मामले को भूल गये हैं या भय से इस तरफ़ नहीं आते हैं।
एक दिन उन लोगों ने अकस्मात् देखा कि धनुष-बाण, लाठी और लकड़ी की तलवार श्रादि अनेक अस्त्र-शस्त्र लिये असभ्य लोग एक साथ अट्ठाइस डोंगियों पर सवार हो टापू में उतर आये।
यह देख कर द्वीपवासियों के भय की सीमा न रही। असभ्य लोग सन्ध्या समय टापू में आ पहुँचे इसलिए द्वीप वालों को सारी रात सलाह-विचार करते ही बीती। अन्त में यही तय हुआ कि इतने दिन हम लोग छिप कर ही बेखटके रहे हैं इसलिए अब भी छिपकर रहना ही अच्छा है। यह निश्चय करके सभी ने दोनों अँगरेज़ों के घर को उजाड़ कर उसका चिह्न तक न रहने दिया; और बकरों को गुफा के भीतर छिपा कर बन्द कर रक्खा। असभ्य लोग सिर्फ उन्हीं दोनों अँगरेज़ों के निवास स्थान का पता जानते थे इसलिए वे लोग पहले इसी स्थान पर आक्रमण करेंगे, यह सोच कर हम लोग वहीं एकत्र होकर उनके आने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह होते ही कोई डेढ़ सौ असभ्य वहाँ आकर इकट्ठे हुए। हम लोगों के दल में बहुत कम आदमी थे। सत्रह स्पेनियर्ड, पाँच अँगरेज़,