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उपनिवेश में समाज और धर्म-संस्थापन।

पुरोहित ने कहा-तो मुझे आप यहाँ छोड़ते जायँ। मैं इन लोगों को धार्मिक शिक्षा दूँगा और इन लोगों के हृदय में ईश्वर की भक्ति स्थापित करने की चेष्टा करके अपने को धन्य मानूँगा।

उनके मुख की उज्वल शोभा और उत्साह देखकर मैं दङ्ग हो रहा। आख़िर मैंने पूछा-"क्या आपने इस बात को भली भाँति सोच लिया है कि इस निर्जन टापू में रहना कितना कष्टकर है? और यहाँ से इस जीवन में देश लौट जाने की संभावना भी नहीं है। हो सकता है, इसी टापू में जीवन-लीला समाप्त हो।" ये बातें जानकर भी वे इस टापू में रहने को राजी हुए। उन्होंने कहा-इन धर्महीन नरनारियों के मन में परमेश्वर की महिमा और दयाभाव का ज्ञान उपजाकर यदि इन्हें सत्पथ पर ला सकूँगा तो मैं अपने जीवन को सफल समझूँगा। तब मेरा यह द्वीपान्तरवास भी परमसुख का कारण होगा। हाँ, यदि आप कृपा करके अपने सेवक फ़्राइडे को यहाँ छोड़ जायँ तो मेरा विशेष उपकार हो। यह मेरा दुभाषिया बनकर मुझे इस काम में यथेष्ट सहायता देगा।

फ़्राइडे को मैं अपने पास से जुदा नहीं कर सकता था। उससे बिलग होने की बात सुनकर मैं अधीर हो उठा। ऐसे आज्ञाकारी निष्कपट भृत्य को प्राण रहते क्या कोई अपनी आँखों के सामने से हटा सकता है? मैंने पुरोहित से कहा- "फ़्राइडे को छोड़ना मेरे लिए नितान्त कष्टकर है। किन्तु आप जिस काम में अपने जीवन का उत्सर्ग कर रहे हैं उस काम की सहायता के लिए मुझे भृत्य-विच्छेद का कष्ट स्वीकार करना