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क्रूसो का फिर ब्रेज़िल में आना।


रिश की किन्तु उससे भी कुछ फल न हुआ। मेरे द्वीप के अद्भुत कार्यकलाप की ख्याति भी हम लोगो को इस अनुग्रह का पात्र नहीं बना सकती थी। तब मेरे हिस्सेदार को स्मरण हुआ, कि मैंने वहीं को धर्मशाला के फ़ण्ड और दरिद्रों के भरण-पोषण के लिए यत्किञ्चित् दान दिया था। इससे उन्होंने धर्मशाला में जाकर महन्त को मेरी उदारता का स्मरण दिलाया और उन्हें नगराधीश के निकट, हम लोगों के लिए जहाज़ से उतरने की, अनुमति लाने को भेजा। बड़ी बड़ी मुश्किल से मैं, मेरा भतीजा (कप्तान), और छः व्यक्ति, कुल पाठ आदमियों को जहाज़ से उतरने की आज्ञा मिली। किन्तु यह भी इस शर्त पर कि हम लोग जहाज़ से कोई माल न उतारेंगे और बिना सरकार की आज्ञा के किसी व्यक्ति को वहाँ से अपने साथ न ले जा सकेंगे। इस शर्त का पालन इतनी कड़ाई से हुआ कि अपने हिस्सेदार को उपहार देने की सामग्री भी मैं बड़ी कठिनाई से जहाज़ पर से उतारने पाया ।

मेरे हिस्सेदार बड़े सज्जन थे। वे भी मेरी ही भाँति बिना कुछ पूँजी के व्यापार शुरू कर के अब अच्छे धनी हो गये थे। जितने दिन तक हम लोग जहाज़ से न उतर सके उतने दिन तक उन्होंने तरह तरह की खाने-पीने की स्वादिष्ठ वस्तुएँ भेज कर हम लोगों का सत्कार किया था। मैंने जहाज़ से उतर कर उनको प्रतिदान-स्वरूप विविध उपहार दिये।

मैं इँगलैन्ड से जो एक छप्परवाली नाव का फ्रेम लाया था उसमें इन्हींकी सहायता से तख़्ते जड़वा लिये। उन्होंने मिस्त्री के द्वारा उसे भली भाँति ठीक ठाक करा दिया। मैंने वह नाव एक व्यक्ति को सौंप कर उसकी मारफ़त भाँति भाँति