और जिसको हम लोग सुख का कारण समझते थे, वह न मालूम कहाँ तक दुःखदायक था। इसी कारण उपनिषद् के परमज्ञाता ऋषियों ने ईश्वर से प्रार्थना करके कहा है-हे जगत्पिता, हमें आप वहो दें जिससे हम लोगों का परममङ्गल हो, हम लोग जो चाहे वही न दे दें।
मदागास्कर टापू में हत्याकाण्ड
ब्रेज़िल से बिदा हो हम लोग अटलांटिक महासागर पार करके गुडहोप अन्तरीप में पहुँचे। रास्ते में कोई विघ्न नहीं हुआ। यहाँ से समुद्र-पथ हम लोगों के लिए अनुकूल हुआ। स्थल-मार्ग ही विघ्नों का घर हो उठा। अब से जो कुछ विपत्ति आई वह स्थलमार्ग में ही, समुद्र-पथ में नहीं।
गुडहोप अन्तरीप में पानी लेने के लिए जितनी देर तक रहना दरकार था उतनी देर जहाज़ रोक रक्खा गया। वहाँ से रवाना होकर जहाज मदागास्कर टापू में जा लगा। वहाँ के निवासी अत्यन्त नृशंस थे। वे बाणविद्या और शक्तिप्रक्षेप में सुपटु थे, फिर भी उन लोगों ने हमारे साथ अच्छा बर्ताव किया। हम लोगों ने उन्हें छुरी, कैंची आदि सामान्य वस्तुएँ उपहार में दीं। इसीमें सन्तुष्ट हो कर उन लोगों ने हमको ग्यारह हृष्ट-पुष्ट बछड़े ला दिये।
देश देखने का उन्माद विशेष कर मुझी को था। ज़रा सा सुयोग पाते ही मैं स्थल में उतर जाता था और समुद्र-तटवर्ती लोग चारों ओर इकट्ठे हो चुपचाप खड़े होकर देखते थे। उन लोगों में सन्धि-स्थापन की प्रणाली बड़ी विचित्र थी।