यह घोर अत्याचार देखकर मेरा सर्वाङ्ग शून्य सा हो गया। मेरा अन्तःकरण विकल हो उठा। उन नगर-निवासियों
को खदेड़ते हुए वे दुष्ट नाविक यदि मेरे पास आते तो
आश्चर्य नहीं कि मैं उनको गोली मार देता। हम लोगों ने
उन भयार्त नर-नारियों को अभय दिया। तब वे हम लोगों
के सामने घुटने टेक कर बैठे और अत्यन्त कातर हो रो रोकर
प्राण की भिक्षा चाहने लगे। हम लोगों ने उन्हें पूर्णरूप से
आश्वासन दिया। तब वे इकट्ठे होकर हमारा आश्रय ग्रहण
कर हमारे पीछे पीछे चले। मैंने अपने साथवाले नाविकों
से कहा―“तुम लोग उन आततायी नाविकों में से किसी के
साथ जा मिलो। किन्तु ख़बरदार! किसीको व्यर्थ न सताना।
उन उद्दण्ड माँझियेां को समझा दो कि रात में ही यहाँ से
भाग चलें नहीं तो सबेरे लाखों आदमी इस पैशाचिक कर्म
का बदला लेने आवेंगे।” इसके बाद हमने दो आदमियों को
साथ ले उन भयभीत नर-नारियों के समीप जाकर बड़ा ही
भयानक दृश्य देखा। हाय! हाय! कोई कोई भयानक रूप से
आग में पड़कर झुलस गये हैं। एक स्त्री दौड़ने के समय
अग्निकुण्ड में जा गिरी थी, उसका सारा अङ्ग जल गया था।
दो एक व्यक्तियों की पीठ और पसुली में माँझियों ने तलवार
मार दी थी। एक आदमी को किसीने गोली मार दी थी।
वह मेरी आंखों के सामने ही मर गया।
इस राक्षसी व्यवहार का कारण जानने के लिए मेरे मन में बड़ी ही व्यग्रता हो रही थी। किन्तु जानता कैसे? द्वीप- निवासियों ने इशारे से जताया कि इस आकस्मिक आक्र- मण का कारण हम कुछ भी नहीं जानते। मुझसे अब रहा न गया। मैं शहर के भीतर जाने और जिस तरह हो इस घोर