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मदागास्कार टापू में हत्याकाण्ड।


हत्याकाण्ड को रोकने के लिए चञ्चल हो उठा। मैं अपने साथियों को पुकार कर चलना ही चाहता था कि इतने में जहाज़ का माँझी और चार नाविक हताहत स्त्री-पुरुषों के शरीर को पैरों से कुचलते, उछलते-कूदते मेरे पास आये।

उनका शरीर लह से लथपथ था तो भी उन लोगों की रक्तपिपासा अब तक मिटी न थी। भूखे बाघ की भाँति वे लोग तब भी अनावश्यक नरहत्या के लिए लोलुप बने फिरते थे। हमारे साथियों ने उन्हें पुकार कर बुलाना चाहा, पर वह पुकार क्या उनके कानों में प्रवेश करती थी? बड़ी बड़ी मुश्किल से एक ने हम लोगों की पुकार पर ध्यान दिया। पीछे सभी मेरे पास आ गये।

माँझी हम लोगों को देखते ही मारे उल्लास के सिंहनाद कर उठा। उसने समझा कि उनके इस पैशाचिक कर्म के पृष्ठ-पोषक और भी कई व्यक्ति आये हैं। वह मेरी बात सुनने की कुछ अपेक्षा न करके उच्चवर से बोला-"कप्तान, कप्तान! आप आये हैं, अच्छा हुआ। हम लोगों को अब भी आधा काम करना है। टाम जेफ़्री के सिर में जितने बाल हैं उतने मनुष्यों का जब तक बलिदान न करेंगे तब तक हम लोग दम न लेगे। इन दोज़ख़ी कुत्तो का इस दुनिया से नाम-निशान मिटाकर ही यहाँ से हम लोग जायँगे। अभी क्या हुआ है?" यह कहकर उन लोगों ने दौड़ लगाई। मेरी एक भी बात सुनने की अपेक्षा न की।

उनको रोकने के लिए मैंने चिल्लाकर कहा-"अरे नीच, पिशाच! तुझे क्या सूझा है? ख़बरदार! अब एक आदमी को भी तू न मार सकेगा। किसी पर हाथ चलाया कि समझ रख