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पृष्ठ:राबिन्सन-क्रूसो.djvu/३६७

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राबिन्सन क्रूसो।


है। पर क्या किया जाय? मैं भी मनुष्य ही हूँ। अपने नाविक की ऐसी निर्दय हत्या देखकर मैं स्थिर न रह सका।" नाविकगण जानते थे कि वे मेरे अधीन नहीं हैं। इसलिए मेरे तिरस्कार की उन्होंने कुछ परवा न की।

तथापि मैंने उन लोगों का तिरस्कार करना न छोड़ा। जभी मौका मिल जाता उन लोगों का तिरस्कार किये बिना न रहता था। माँझी अपने पक्ष के समर्थन की चेष्टा करते थे। मैं उन लोगों को खूनी कहता था और जब तब उन लोगों से कह दिया करता था कि तुम लोग भगवान् के रोषानल में अवश्य पड़ोगे। तुम्हारी वाणिज्ययात्रा कभी शुभप्रद न होगी।



भारत में क्रूसो का निर्वासन

हम लोगों ने मदागास्कर से चल करके भारत की ओर जाने के रास्ते में फ़ारस की खाड़ी में प्रवेश कर के अरव के उपकूल में जहाज़ लगाया। हमारे पाँच नाविक साहस कर के किनारे उतरे, किन्तु फिर उन का पता न मिला कि वे लोग कहाँ गये, क्या हुए। या तो अरब के लोगों ने उन्हें मार डाला होगा या वे लोग उन्हें नौकर बनाने के हेतु पकड़ ले गये होंगे। मैंने अन्यान्य नाविकों से तिरस्कार-पूर्वक कहा-"यह भगवान् का ही दण्ड है।" इसपर माँझी रुष्ट होकर बोला"-इन पाँचों में एक व्यक्ति भी मदागास्कर के हत्याकाण्ड में लिप्त न था, तब उनके ऊपर भगवान् का यह दण्ड क्यों हुआ?" मैंने कहा-सङ्ग-दोष से।

मैं जो नाविकों का उनकी अन्याय-परता और नृशंसता के लिए जब तब तिरस्कार किया करता था उसका फल