मित्र! मैं तुम्हारे इस उपकार का बदला कैसे चुकाऊँगा?" उसने कहा-मैं नाविक हूँ और एक पोर्चुगीज मेरा सङ्गी है। हमारा आठ नौ महीने का वेतन बाकी है। यदि आप वह दे दें तो हम आप ही के यहाँ रह जायें। इसके बाद जो आपके धर्म में आवे, हमें दीजिएगा।
मैं इस शर्त पर राज़ी होकर उन्हें साथ ले जहाज़ पर सवार हुआ। जहाज़ पर पाँव रखते ही मेरा साथी अँगरेज़ खुशी से चिल्ला कर बोला-वाह, वाह, छेद तो बन्द हो गया। बिलकुल बन्द हो गया।
मैं सच कहो, धन्य परमेश्वर! तो अब देर करने की क्या ज़रूरत? अभी लंगर उठाओ।
शरीक-लंगर उठावे! यह क्यों? मैं इस प्रश्न का उत्तर पीछे दूँगा। अभी एक मिनट भी विलम्ब करने का समय नहीं है। सभी लोग मिल कर जहाज़ को शीघ्र यहाँ से ले चलो।
सभी लोगों ने बड़े अचम्भे में आकर तुरन्त जहाज़ खोल दिया। मैं अपने साथी अँगरेज़ को कमरे में बुला कर यह सब वृत्तान्त कही रहा था कि इतने में एक नाविक ने आकर खबर दी-हम लोगों को पकड़ने के लिए पाँच जहाज बड़ी तेज़ी से दौड़े आ रहे हैं।
मैंने सब नाविकों से कह दिया कि वे लोग हमें लुटेरे (जलदस्यु) समझ कर पकड़ने आ रहे हैं। यदि तुम लोग हमारी सहायता करने को प्रस्तुत हो तो मैं उन लोगों से एक बार भिड़ जाऊँ। मेरी राय मान कर सभी ने मेरी आज्ञा का पालन करना स्वीकार किया।