ही यह बात सूझी थी। हम लोगों के टंकुइन-उपसागर में प्रवेश करने के बाद तुरन्त दो ओलन्दाज़ (पोर्चुगीज़) जहाज़ वहाँ आ पहुँचे।
जहाँ मैं रहूँ वहाँ शान्ति की संभावना कहाँ? हम लोगों के पीछे तो शत्रु थे ही, पर भाग्यदोष से हम लोगों के सम्मुख भी मित्र न मिले। चीनवाले हम लोगों को देख कर जो भाव प्रकाश करने लगे उससे किसी को सन्देह न रहा कि ये लोग हम लोगों के साथ अच्छा बर्ताव करेंगे।
हमारे जहाज़ को किनारे पर देख झंड के झंड चीनी लोग टिड्डीदल की भाँति नदी के किनारे एकत्र होने लगे। हम लोगों ने जब जहाज को किनारे लगा कर उस पर से चीज़-वस्तुओं को उतार कर जहाज को मरम्मत के लिए उलट दिया तब चीनी लोगों ने समझा कि इन का जहाज किनारे लग कर उलट गया है। इससे वे लोग हम सबको दासरूप में बन्दी करने और हम लोगों का माल-असबाब लूटने के लिए आतुर हो उठे। हमारे नाविक जब जहाज की मरम्मत कर रहे थे तब चीनी लोग नाव पर सवार हो हम लोगों को घेरने लगे। उन का दुराशय समझ कर हम अपनी तरफ के लोगों को जहाज से बन्दूक़ और गोली-बारूद देने लगे। चीनियों ने समझा कि हम लोग टूटे जहाज पर से माल उतार रहे हैं। वे लोग निःशङ्क भाव से झट आकर हमारे नाविकों को पकड़ने की चेष्टा करने लगे। हम लोगों का जहाज एक तरफ़ किनारे लगा था। सभी लोग एक तरह से असावधान थे। यह समय युद्ध करने के लिए उपयुक्त न था। हम लोगों ने झटपट माल-असबाब को सहेज कर अपने जहाज को किनारे से हटा कर पानी में ले जाना चाहा। चीनी