समुद्र में रहने से जितना ही प्राण व्याकुल था उतना ही स्थल में आने से आराम मालूम होने लगा। किनारे उतर कर वृद्ध महाशय ने हम लोगों के रहने के लिए एक स्थान ठीक कर दिया। हम लोग उसी स्थान में अपना माल उतार कर ले गये और वहीं रहे। घर बेत के बने थे। घर के चारों ओर मोटे मोटे बेतों का घेरा था। इस देश में चोरों का बड़ा भय था। वहाँ मैजिस्ट्रेट ने हम लोगों के माल की निगरानो के लिए कई पहरेदार तैनात कर दिये थे। उन लोगों के खाने के लिए चार मुट्ठी चावल और चार आना पैसे रोज़ देकर उन्हें काबू में कर लिया था। वे लोग फरसे को कन्धे पर रख कर बड़ी सावधानी के साथ पहरा देने लगे।
चोरी के जहाज़ की सद्गति
यहाँ इन दिनों एक मेला हुआ करता था। मेला ख़तम हो चुका था, तब भी कई जापानी सौदागर वहाँ थे। हमारे वृद्ध विदेशी महाशय एक जापानी सौदागर को अपने साथ ले आये। उस सौदागर ने हम लोगों को कुल अफ़ीम खुब चढ़े बढ़े दर से तौला ली और उसके बदले सोना तौल दिया। तब हम लोगों ने उससे जहाज मोल लेने का प्रस्ताव किया। वह सिर हिलाकर चला गया।
कई दिन पीछे उसने फिर आकर कहा-जहाज़ खरीदने का इरादा पहले न था इसीसे सौदा खरीदने ही में मैंने सब रुपये खर्च कर डाले। अब हाथ में इतना रुपया नहीं कि जहाज मोल ले सकूं। इसलिए यदि आप जहाज भाड़े पर दे सके तो मैं ले सकता हूँ।