तातार देश के प्रायः हरेक गाँव में चामचीथोंगु देवता ही प्रधान है। यहाँ रहने वालों के घर घर में मूर्ति-पूजा होती है। इसके सिवा वे लोग सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र, जल, वायु और बर्फ़ आदि समस्त प्राकृतिक पदार्थों को पूजते थे मानों प्रकृति ही उनकी देवी-देवता है। सम्पूर्ण प्रकृतिमयी सृष्टि में एक ईश्वर ही की शक्ति का विकाश है, इसका ज्ञान उन लोगों को कुछ भी नहीं है। वे लोग अविद्या के गाढ़ अन्धकार में पड़कर सभी को भिन्न भिन्न मानकर पूजते हैं।
सब आया इस एक में झाड़-पात फल-फूल।
कबिरा पाछे क्या रहा गहि पकड़ा जिन मूल॥
क्रमशः हम लोग टोबालस्क नगर में उपस्थित हुए। हम लोग सात महीने से बराबर रास्ता चल रहे थे। अब पाला पड़ने लगा। जाड़े की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ने लगी। हम लोग चिन्तित हो उठे। किन्तु रूसी लोग उत्साह देकर कहने लगे कि चलने का मज़ा तो शीतकाल ही में है। सफ़र शीतकाल ही का अच्छा। जब जल, थल, पहाड़ और मैदान सभी स्थान कठिन बर्फ़ से ढँककर एक से चिकने हो जाते हैं तब उनके ऊपर बल्गा हरिण की बेपहिये की गाड़ी में बैठ कर दिन-रात चलने में बड़ा आनन्द और आराम मिलता है।
तुम लोगों का आनन्द और आराम तुम्हें मुबारिक हो। बर्फ से आच्छादित देश में मुझे तो विशेष सुख का अनुभव न होता था। हाय! इस समय मुझे वह अपना टापू स्मरण हो आया। वहाँ बराबर वसन्त ही बना रहता था। देह पर कपड़ा डालने की भी प्रायः आवश्यकता न पड़ती थी; और यहाँ यह दुरन्त दारुण शीतकाल की कठिन विभीषिका! कितना ही बदन में कपड़ा लपेटो तो भी बदन गरम न हो।