वाणिज्य व्यवहार करने के लाभ की बात कहा करता था ।
काँच के टुकड़े, आइना, छुरी, कैंची, खिलौना, माला आदि
सामान्य वस्तुओं के बदले वहाँ स्वर्णरेणु, अनाज, हाथीदाँत
आदि कीमती चीजें-—यहाँ तक कि हबशी नौकर तक मिलते हैं ।
हबशी नौकर लाने से हम लोगों के खेती के कामों में बहुत
कुछ मदद मिल सकती है, यह भी मैं उन लोगों को समझा ।
देता था । वे लोग मेरी बातों को खूब जी लगाकर सुनते थे । "
एक दिन सवेरे मेरे परिचितों में से तीन व्यक्तियों ने आकर यह प्रस्ताव किया--आप दो बार गिनी-उपकूल में जा चुके हैं । अतएव नौकर लाने के लिए आपही को जाना होगा । इसके लिए जहाज़ और खर्च का प्रबन्ध हम लोग कर देंगे । नौकर ले आने पर, आपके परिश्रम के बदले हम लोग आपसे बिना कुछ लिए ही नौकर का बराबर हिस्सा आप को देंगे ।
यह प्रस्ताव मुझे बहुत अच्छा जान पड़ा । दूसरा कोई आदमी होता तो इस प्रस्ताव में सम्मत न होता; किन्तु में तो चिरकाल से अपने सुख पर आप ही पानी फेर रहा था । मैं इस प्रलोभन को न रोक सका । तुरन्त स्वीकृत कर कहा--“यदि तुम लोग मेरे परोक्ष में मेरी खेती-बारी का काम सँभाले रहो और यदि मैं मर जाऊँ तो मेरे कथनानुसार मेरी सम्पत्ति की व्यवस्था करना स्वीकार करो तो मैं जा सकता हूँ ।" उन लोगों ने मेरी शर्त पर राज़ी होकर एक स्वीकारपत्र लिख दिया । मैंने भी एक वसीयत-नामा (सम्पत्ति-विभागपत्र)लिखा । उसमें अपने उद्धारकर्ता कप्तान को ही मैंने अपना उत्तराधिकारी किया । मेरी मृत्यु के अनन्तर मेरी सारी सम्पत्ति का आधा अंश वे लेकर बाकी