कर देखा, तरंग फिर दौड़ी आ रही है, और वह अभी मेरे
हुआ, आगे की ओर बढ़ने लगा । देर तक साँस रोकने से मेरा
कलेजा फटा ही चाहता था । ऐसे समय एकाएक मैं पानी
के ऊपर उतरा उठा । मेरा सिर और हाथ पानी के बाहर
निकल आये । इससे मुझे बहुत आराम मिला । मैं ज़्यादा से
ज़्यादा दो सेकेन्ड पानी के ऊपर रहा हूँगा, किन्तु इतने ही में
मेरा बहुत कुछ उपकार हुआ । साँस लेने से मुझे फिर नया
साहस मिला । मेरे शरीर में फिर नई शक्ति का कुछ संचार
हुआ । किन्तु फिर मैं पानी के भीतर छिप गया । इस दफ़े
बहुत देर तक भीतर नहीं रहना पड़ा । मैंने देखा कि तरंग अब
लौटी जा रही है । मैं हाथ पाँव के बल खूब जोर से तरंग के
प्रतिकूल तैरकर ज्यों ही कुछ दूर आगे बढ़ा त्यों ही मेरे
पैर ज़मीन से जा लगे । कुछ देर तक खड़े होकर मैंने साँस
ली और फिर शरीर में जितना बल था उतने बल से मैं तुरन्त
स्थल की ओर दौड़ चला किन्तु दौड़ने ही से मैंने समुद्र
के हाथ से छुटकारा न पाया । अब भी मेरी जान की छुट्टी न
हुई । फिर एक हिलकोरा मेरे पीछे बड़ी तीव्र गति से आ
गया । मैं पूर्ववत् फिर पानी के भीतर आगे ओर लुढ़कने
लगा । समुद्र का तट चिपटा था, इससे मैं दो बार और तरंगों
का धक्का खाकर थल पर आ लगा ।
आख़िरी तरंग तो मुझे एक प्रकार से समाप्त ही कर चुकी थी । उसने मुझको लिये दिये ऐसे ज़ोर से एक पत्थर के ऊपर उठा कर पटक दिया कि ऐसा जान पड़ा मानो दम निकल गया हो । छाती में सख चोट लगने से मैं मूर्च्छित हो गया । यदि उसी समय फिर दूसरी लहर आती तो दम घुट कर वहीं मेरा काम तमाम हो जाता । मैंने कुछ सँभल