जितनी बुद्धि थी उससे यही निश्चय किया कि पेड़ पर चढ़कर
मैं किसी तरह रात बिताऊँगा । आज किसी कँटीले वृक्ष पर
बैठ कर ही सारी रात काटूँगा और सोचूँगा कि दूसरे
दिन किस तरह मृत्यु होगी । क्योंकि प्राण-रक्षा की कोई
सम्भावना ही न देख पड़ती थी । जिधर देखता था उधर
ही मृत्यु मुँह फैलाये खड़ी दिखाई देती थी । मैं प्यास से
व्याकुल था । मारे प्यास के मेरा कण्ठ सूख रहा था । मीठा
जल कहीं है या नहीं, यह देखने के लिए मैं समुद्रतट
से स्थल भाग की ओर गया । एकआध मील जाने पर
अच्छा पानी मिला । मैंने बड़े उल्लास से अंजलि भर कर पानी
पिया । प्यास शान्त होने पर कुछ भूख मालूम होने लगी;
पर साथ में था क्या जो खाता । था सिर्फ तम्बाकू का पत्ता ।
उसी को तोड़ कर थोड़ा सा मुँह में रक्खा । नींद से आँखें
घूमने लगीं । मैं झट एक पेड़ पर चढ़ कर जा बैठा । रात में
नींद आने पर कहीं गिर न पड़ूँ , इसका प्रबन्ध पहले ही कर
लिया । पेड़ की एक डाल काट कर उसी का सहारा बना
लिया । दिन भर का थका-मादा था, बैठने के साथ ही गाढ़ी
नींद ने आकर धर दबाया । खूब चैन से सोकर जब मैं जागा
तब बदन में अच्छी फुरती मालूम होने लगी । मानो फिर
नस नस मे नया उत्साह भर गया ।
जब मैं सोकर उठा तब देखा कि सवेरा हो गया है, आकाश बिलकुल साफ़ है, हवा रुक गई है, समुद्र की तरंगें भी अब उस प्रकार नहीं उछलतीं । रात में ज्वार के समय हमारा बालू में फँसा हुआ जहाज़ बह कर किनारे की ओर जहाँ मैंने पहले पत्थर से टकरा कर चोट खाई थी वहाँ तक, चला आया है । वह जगह स्थल भाग से