जब रामचन्द्रिका सटीक। ११७ किये । जिनके मुखकी छवि देखि जिये ॥ कृतचित्त चकोर कळूक धरो। सिय देहु बताय सहाय करी ३८॥ ३३ करुणा करिके बैकोसकी पाहुदई औ यह वर दियो कि जो इन बाहुनके मध्य में मात्रै ताको खाहु जब सीताहरण हैहै तब रामचन्द्र या मग है ऐहैं तिनके गहन उपायों उद्धरहुकहे तुम्हारो उद्धार होई अर्थ रामचन्द्रको इन पाहुन सो गहिहौं तब तेरो उद्धार हैहै ३४ सुरसरि गोदा- वरी ३५॥३६ जब सीताको तुम अवलोफत रहे कहे देखत रहौ तब अपनासों अधिक सुदर सीता के कुच देखि तुम्हारे दुःख होतरहै अथवा हमको सयोगी देखत रहे तासों तुम्हारे दुःख होत रह्यो ३७ शशि जो अति सुंदर जिनके मुखको देखि शशिकी ओर विलोकियो छोड़ि केवल जिनके मुखकी अपि देखिकै जियत रहे हो अथवा शशिके अवलोकन दर्शन दूरि किये पर अर्थ जब कृष्णपक्षमें चन्द्रमा आफ्नो दर्शन दृष्टिसों दूरि कियो न देखि पस्यो तब चन्द्रसम केवल जिनके मुखकी छविको देखि जियत रहे हो वह |कृत कहे उपकार कछु चिसमें धरिफै सीताको वताइ देउ ३८ ॥ सवैया।।कहि केशव याचकके परिचपक शोक अशोक लिये हरिकै । लखि केतक केतकि जाति गुलावते तीक्षण जानि तजे डरिके। सुनि साधु तुम्हें हम घूमन भाये रहे मन मौन कहा धरिक । सियको कछु सोधु कहो करुणामय सो करुणाकरि नाकरिके ३६ नाराचछंद ।। हिमांशु सूरसों लगे सो बात वज्रसी बहै । दिशा लग कृशानु ज्यों विलेप अंग को दहै ॥ विशेषि कालराति सों करालराति मानिये । वियोग सीयको न काल लोकहार जानिये ४०॥ रामचन्द्र करुणयक्ष सों कहत हैं कि चपक जे हैं ते याचक के परि शत्रु हैं पुष्पनको याचक जो भ्रमर है ताको निकट नहीं भावनदेत चपकमें भ्रमर नहीं बैठत यह प्रसिद्ध है ता भयसों चंपकसों सीताको सोधु नहीं जांचे अशोक ने शुक्षहैं तिन शोकको हरिकै छोड़ि अशोक यह जो नाम है ताको लीन्हो है लासों शिनहूँको तज्यो है कि जिनके शोक है ही नहीं ते हमारो
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