रामचन्द्रिका सटीक । | दुःख देखि दुःखी है कृपा करि सीताको सोधु कहे बताइ हैं केतकि केवरा औ केतकी श्री गुलाब इनकी जाति जे और कंटकरश हैं कमलादि तिन्हें तीक्ष्ण कहे कंटकित जानिकै डरिकै तज्यो है सो हे करुणा कहे करुणयक्ष ! करुणा कहे दीनतामय जे हम है तिनसों सीताको कछू सोधु कहौ ३६ रामचन्द्र लक्ष्मणसों कहत है कि हिमांशु जो चंद्रमा है सो हम को सूर्यसम तस जागत है औ वायु वजसम बहतिहै श्री दशौ दिशा अग्निके समान सप्त लागती हैं भी तुम जो शीतसताके अर्थ हमारे अंगन में विलेप करत हो सो अगनको जारत है औ राति कालरातिसम कराल लागति है औ सीता को वियोग लोकहार काल कहे सहारकालसम लागत है ४० ॥ पद्धटिकाछद ॥ यहिभाति विलोके सकल दौर । गये शबरीपे दोउ देवमौर ॥लियो पादोदक त्यहि पदपखारि। पुनि अादिक दीन्हे सुधारि ४१ हर देत मंत्र जिनको वि- शाल । शुभकाशीमें पुनि मरणकाल ॥ ते पाये. मेरे धाम श्राज । सब सफल करन जपतपसमाज ४२ फल भोजनको तेहि घरे प्रानि। भयेयज्ञपुरुषप्रतिप्रीतिमानि॥तिन रामचन्द्र लक्ष्मणस्वरूप। तब घरे चिच जगज्योतिरूप ४३ दोहा।। शबरी पावक पंथ तब हरषि गई हरिलोक ॥ वनन विलो- कत हरि गये पंपातीर सशोक ४४ तोटकछद ॥अतिसुंदर शीतल शोभ बसे । जहॅ रूप अनेकनि लोभ लसै ॥ बहुपं- कज पक्षि विराजत हैं। रघुनाथ विलोकत लाजत है ४५ सिगरी ऋतु शोभित शुभ्रजही लहै प्रीषमपैन प्रवेश सही। नव नीरजनीरत हासरसैं | सियके शुभलोचनसे दरसैं ४६ ॥ ४१ मंत्र रामनारक तप औ जपसमाज के सफल करन कहे सफ्लकर्ता मोजोस ज्या करन है HTTTT सन्नी तई ४ | ०३ जीवादी अग्निमा जति माहै पामर मनिपुरी प्रीशीनल है नहा शामा मामा दा प्राय IT निमोनाको नाममा
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