पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१२३

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१२० रामचन्द्रिका सटीक । है मतिकूल दुःखद जो शुकादिक होत हैं सोज न्यायही है काहते वे पक्षी पशु हैं इनकी गतिको नहीं जानत कि ये ईश्वर हैं कमलाकर पद श्लेष है कमलनके श्राकर समूहसों युक्त श्री कमला लक्ष्मीके उत्पमकर्ता युक्ति यह कि के तुम्हारे जामाता हैं इनको दुख देना तुम्हें न चाहिये ४८॥ दोहा ॥ ऋष्यमूक पर्वत गये केशव श्रीरघुनाथ ॥ देखे वानर पंचविभु मानो दक्षिण हाथ ४६ कुसुमविचित्राबदः ।। तब कपिराजा रघुपति देखे । मनु नरनारायणसम लेखे ॥ द्विजवषु परि तहँ हनुमत पाये । बहुविधि आशिषदै मन भाये ५० हनुमान् ॥ सब विधि रूरे वनमह कोहो । तन मन शूरे मनमथ मोहौ ।। शिरसिजदा बकलावपुधारी हरिहर मानहु विपिनविहारी ५१ परमवियोगी समरसभीने। तनमन एकै युगतन कीने ।। तुम को हौ कालगि वन आये। क्यहि कुलहौ कौने पुनि जाये ५२ राम-चंचरीछंद ॥ पुत्र श्री दश- स्त्यके वनराजशासन भाइयो। सीय सुंदरि संगही बिछुरी सो सोध न पाइयो । राम लक्ष्मणनामसंयुत सूरवश बखा- निये।रावरे वन कौन हो क्यहि काज क्यों पहिचानिये ५३॥ मुग्नीव हनुमान् नल नील सुषेण ये पांच जे धानर हैं विभु कहे प्रतापी तिनसहित ऋष्यमूकको देख्यो मानो सो पृथ्वी को दक्षिणहाथहै पृथ्वी इति शेषः अथवा मानों अपनी दक्षिण हाथही देख्यो है मित्रकों में भ्राताको दक्षिण बाहु सम कहिये की रीति है ४६ नरनारायणके रूप है ५० रूरे सुदर ५१ परमवियोगी हो अर्थ तुम्हारी चेष्टाते जानिपरत है कि काहू बड़े हिसको वियोग भयो है औं जटा बल्फलादि सो शांतरस में भीने जानि परत हौ ५२ शासन भाज्ञा ५३ ।। हनुमान-दोहा । या गिरिधर सुग्रीव नृप तासँग मत्री बारि ॥ वानर लई बड़ाइ तिय दीन्हा बालि निकारि ५४ दोधकछद ॥ वाकह जो अपनो करि जानो। मारहु बालि