रामचन्द्रिका सटीक। १२१ बिनै यह मानो ॥ राज देहु जो वाकि तियाको। तो हम देहिं बताय सियाको ५५ लक्ष्मण ॥ आरतकी प्रभु प्रारति टारौ। दीन अनाथनको प्रतिपारौ ॥थावर जगम जीव जो कोऊ। सन्मुख होत कृतारथ सोऊ ५६ वानरलै हनुमान सिधारेउ । सूरजको सुत पायनि पारेउ ॥ राम कह्यो उठि वानरराई । राजसिरी सखिस्यो तिय पाई ५७ दोहा।। उठे राज सुग्रीव तब तन मन अति सुखपाइ ॥ सीताजूके पट- सहित नूपुर दीन्हे प्राइ ५८ तारकलंद ॥ रघुनाथ जबै पट नूपुर देखे । कहि केशव प्राणसमानहि लेखे ॥ अवलोकत लक्ष्मणके कर दीन्हे । उनादरसों शिरमानिकै लीन्हे ५६ राम- दडक ॥ पजर कि खजरीट नैननको किधौं मीन मानसको केशोदास जलु है कि जालु है । अंगको कि अग- राग गेडा कि गलसुई किधौं कटिजेव हीको,उरको कि हारुहै। बंधन हमारो कामकेलिकों कि ताड़िबेको ताजनो विचार कोकि चमर विचारु है । मानकी जमनिका कि कजमुख दिने को सीताजू को उत्तरीयसबसुखसार है ६०॥ वानर पालिको विशेषण है ५४ । ५५ कृतार्थ कहे कृत है अर्थ प्रयोजन जाको ५६ अर्थ पालिको मारिकै राज्य श्रीसहित तुम्हारी स्त्री हम तुमको देहैं ऐसो निश्चय वचन रामचन्द्र सुग्रीव को दियो ५७ १५८ शिर मानिक कहे शिरपर राखिकै ५६ रामचन्द्र कहते हैं कि हमारे खजरीट कहे खंड रिचरूपी जे नयम हैं सिनको पंजर पिंजरा है जामें परि नयनकै कढ़न नहीं पारत औ कि मीनरूपी जो मानस मन है ताको जल है कि जाल है जैसे मीन जलसों नहीं कहति तैसे मन याशों नहीं कढ़त औजालको श्री पजर को हेतु एकई है अगनको कि अगराग कहे चन्दनादिको लेप है कि गेडा तमिया है कि गनमुई लोग किया है अर्थ रपर्शने अगनको अगरागादि सम मुखर है औ कि कटिव कहे शुद्रघंटिका है श्री कि हीको मेव को ANNI
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