पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१२६

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रामचन्द्रिका सरीक । १२३ जग गायो। रामको शायक सातहु तालनि बेधित रामहिके कर बायो ६५ सोरठा ॥ जिनके नामविलास अखिललोक बेधत पतित ॥ तिनको केशवदास सातताल वेधत कहा ६६ राम-तारकछंद ॥ अतिसगति वानरकी लघुताई। अप- राध विना वध कौनि बडाई ॥हति बालिहिं दे तुम्हें नृप शिच्छा । भवहै कछु मोमन ऐसिय इच्छा ६७॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायांसीताहरणरामसुग्रीव- मैत्रीवर्णनन्नाम द्वादश-प्रकाशः ॥ १२॥ ६२ । ६३ । ६४१६५४६६ पाखिके शीघ्र वध आपने अंतर निश्चय को प्रकट करत मित्रताधिक्यको दिखावृत रामचन्द्र परिहासपूर्वक सुग्रीवसों कहते हैं कि हे सुग्रीव ! वानरकी संगति अतिलघुता है काहेते अपराध विना धधर्मे कळू बड़ाई नहीं है लघुताइही है परतु हमारे मनमें अब यह इच्छा है कि वाशिको मारि तुमको तृपशिक्षा दीजै अर्थात् राजा कीजिये यह केवल वानरसंगतिको प्रभाव है बिन काज अकाज करिवो सब वानरल को स्वभाव होत है तिनकी सगतिते तैसो स्वभाव भयो चाहे ६७ ॥ इति श्रीमजगजननिजमकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्तिप्रकाशिकाया बावशा प्रकाश ॥१२॥ दोहा । या तेरहें प्रकाशमें बालिवध्यो कपिराज॥वर्णन वर्षा शरदको उदधिउलघनसाज १ पद्धटिकाबद ॥ रविपुत्र बालिसों होत युद्ध । रघुनाथ भये मनमा क्रुद्ध ॥ शर एक हन्यो उर मित्र काम । तब भूमि गिखो कहि रामराम २ कछु चेत भये तेहि बलनिधान । रघुनाथ विलोके हाथ बान॥ शुभ चीर जटाशिर श्यामगात । वनमाल हिये उरविप्रलात३ बालि ॥ तुम आदि मध्य असान एक । जग मोहतही