१२४ रामचन्द्रिका सटीक । वपुधरि अनेक ।। तुम सदा शुद्ध सबको समान । केहि हेत हत्यो करुणानिधान ४ राम ॥ सुनि वासवसुत मुधिबल विधान । मैं शरणागतहित हते प्राण ॥ यह सांटोलै कृष्णा- वतार । तब कैहो तुम ससारपार ५ ॥ १ मिन जे सुग्रीव हैं तिनके काम कहे अर्थ बालिके वध केवल सुग्रीव ही को हित है रामचन्द्रको कछु हित नहीं है २ । ३ जगको भादि कहे उत्पत्ति मध्य कहे प्रतिपाल अवसान कहे सहार एक तुमहीं हो अर्थ अक्षारूप है तुमही सृष्टि करत हो विष्णुरूप है प्रतिपाल करत हौ रुद्ररूप है सहारकरतही सो अनेक वपु शरीर परिकै जगको मोहत ही अर्थ दशरथके पुत्र रामचन्द्र हैं इत्यादि मोह बढ़ावस हौ ४ सांठो कहे बदलो ५ ॥ रघुवीर रंकते राज कीन युवराज विरत अङ्गदहिं दीन। तब किष्किंधा तारासमेत । सुग्रीव गये अपने निकेत ६ दोहा । कियो नृपति सुग्रीव हति बालि बली रणधीर ॥ गये प्रवर्षणअद्रिको लक्ष्मण श्रीरघुवीर ७ त्रिभगीबद ॥ देख्यो शुभ गिरिवर सकलशोभधर फूल बरन बहुफलन फरे । सँग शरभऋक्षजन केशरिके गन मनहुँ धरणि सुग्रीव घरे ।। सँग शिवा विराजै गजमुखगाजै परमृत बोले चित्त हरे। शिर शुभ चन्द्रकधर परम दिगंबर मानों हर अहि- राज धरे॥ रामचन्द्र मुग्रीषको रंक कहे दरिद्री ते रामा कीरदो सुग्रीवपदको संषेध | एक राजपदहु मों है विरद पदवी ६ प्रवपेण नाम जो अद्रि पर्वत है नाम जाइ गाम करयो ७ रामचन्द्र केसो परत देसनभये कि फल हैं परनरह कर अनेक रंगके औं पहुत फ्लन सो परे बहुपदको सवध फलनहू मों है आगे श्लेपो रक्षाकारि वर्णन है शरभ वानर नाम विशेष औं पशुजानि विशेष “शरभन्नु पशो भिन्दिकरभे वानरे भिदि इति मेदिनी " परतहू में है मुग्रीबहू के संग जाधषतादि है केशरी रहे सिंह ताके गण {
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