पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५०

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1 1 २४८ रामचन्द्रिका सटीक । होत असि प्रफुल्लित है प्रकाशको प्राप्त होत है वैसे रावणको प्रभावरूपी जो राम्रि है तामें विभीषणको धामको उदासीन रह्यो सो खक में रामप्रतापरूपी सूर्योदयसो घामसम जो अग्नितेज है तामें शोभित भयो पूर्वयाम कहि या जनायो कि ज्यों ज्यों सूरजसम प्रताप अधिक उदयको प्राप्त हैहै त्यो त्यों कमलसम विभीषणको घर अधिक प्रकाशको माप्त हैहै इति भावार्थः पूर्व याम यासों कयो कि मेघादि करिकै आच्छादित है मेघनसों कहि तृती यादि पहरहू में उदित कहावत है १३ वाल्मीकीयरामायण में कहा है कि लकदाहिकै हनुमार पश्चात्ताप करयो है यामें सौताहू जरिगई हैं तासों फेरि सीताके पास जाइ सीताको शुभ कहे सकुशल देखिकै माणिसम |पाइकै मानद जी मैं भरत भये जैसे कछू मणि रन पाये भातद होत है तैसे भयो १४ । १५ । १६॥ दोधकछंद ॥ श्रीरघुनाथ जबै मणि देखी। जीमहँ भाग दशा समलेखी ॥ फूलि उठ्यो मनु ज्यों निधि पाई । मानहुँ अधसो दीठि सुहाई १७ तारकछद ॥ मणि होहि नहीं मनु प्राहिं सियाकी। उरमें प्रगव्यो तने प्रेमदियाको॥ सब भागि गयो जो हुतो तमछायो । अब मैं अपने मनको मतपायो १८ दरशै हमको बिनही दरशाये । उरलागति आइ बसाइ लगाये ॥ कुछ उत्तर देति नहीं चुप साधी । जिय जानति है हमको अपराधी १६. हनुमान ॥ कछु सीयदशा कहि मोहिं नावे । चर का जड़ बात सुने दुख पावै ॥ शरसों प्रति- वासर वासर लागे। तनघाव नहीं मन माण न खागै २० ॥ भास्य की दशा कहे अवस्था १७ प्रिया प्रियकै मनसों मन मिले अति प्रेम प्रकट होन है यह प्रसिद्ध है सो रामचन्द्र बहाई कि तामणिको दमि प्रेमरूपी जो निया कहे दीपक है नाको तनु कहे सरूप ज्याति इति हमार रमें प्रस्ट गयो तासों यह सीता को मन है ना दीप के प्रस्ट भये सों हमारे मन में जो राम अधार आया रहै सो सर भागि गयो तो हा तम | पढ़ते अज्ञान अथवा रियोग दुख जाना ता तमसे हमारे पनको रावण vemneurmmar