रामचन्द्रिका सटीक । मोहिं करने सो कहोजू। पापु माह जनि रोष गहोजू॥राज- धर्म कहिये छवि छाये।रामचन्द्र नहिं जौलागि आये ३ ॥ सब महोदरादि जे राक्षस हैं सिनसों रावण कहत है कि तुम सब सुर- पाल ने इंद्र हैं जिनको जो भूतल स्वर्ग है ताके पालनहार हो अर्थ इंद्रलोक में राज करयो है आशय यह कि मंत्रनहीं के जोरसों इद्रको जीति इद्रलोक अमन्यो अथवा सुरपाल इद्रसम भूतलपाल हौ इंद्रको ऐसो राज्य करतही सो मूलमंत्र कहे सिद्धांतमत्र अर्थ जिनसों शत्रुकी पराजय आपनो जय होय ऐसे मंत्र जानिये कहे जानत हो वेद पुराणन में बहुत जे मत्र हैं तिन्हें उत्तम औ मध्यम औ अधम तीनि प्रकारके वेद पुराणन करिकै गाइयत है अर्थ वेद पुराण कहत हैं यथा शास्त्रकी दृष्टिसों अर्थ जैसो शास्त्र कहत है ताही विधिसों एकमत हैकै मत्र ठहरावै सो मंत्र उत्तम है नौ जहां मंत्रीजन आपने मनको मन भिन्न २ करें फिरि राजभयादि कारण सो उदासीनता सो एकमत ठहराबैं सो मत्र मध्यम औजो मंत्री अपनेही अपने मनको मत भिन्न भिन्न कहैं एकमत कैसेहू ना होइ सो मत्र अधम है । यथा पाल्मीकीये "ऐकमत्यमुपागम्य शास्त्रदृष्टेन चक्षुपा । मन्त्रिणो यत्र निरतास्तमाहुर्मन्त्र- मुत्तमम् १ बहीरपि मतीर्गत्वा मन्त्रिणामर्थनिर्णयः ॥ पुनर्यत्रैकताम्माप्त: | समन्त्री मध्यमः स्मृतः २ अन्योन्य मतिमास्थाय यत्र समतिभाष्यते । न च कर्मण्यश्रेयोस्ति मन्त्रासोधम उच्यते ३" तिन तीनहूं प्रकार के मंत्रन में आदि उत्तम जो कारण है ताको करिये अर्थ एकमत है कारज करिये श्री मध्यम श्री अधमको भानिये कहे रिकरो ऐसे समय में जे अनुत्तम काज व्यतीत है गये अर्थ अापनेही आपने मनकी सब मिलि कयो तिन बातन को उरमें मानिकै बखानिये कहे कहतही अर्थ ऐसे समय मों ऐसी बात कहियो उचित नहीं है तासों एकमत है मत्र करौ १॥ २॥३॥ प्रहस्त ॥ वामदेव तुमको वर दीन्हो। लोकलोक सिगरे वश कीन्हो। इंद्रजीत सुत सोजगमोहै। रामदेव नरवानर को है ४ मृत्युपाश भुजजोरनि तोरे । कालदंड तुम सौ कर जोरे ॥ कुंभकरण सम सोदर जाके। और कौन मन पावत ताके ५ कुंभकर्ण-चतुष्पदी॥ आपुन' सब जानत कह्यो न
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