पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१५८

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१५६ रामचन्द्रिका सटीक। मानत कीजै जो मनभावै । सीता तुम पानी मीच न जानी मान कि मत्र बतावै॥ जेहि बर जगजीत्यो सर्ब प्रतीत्यो तासों कहा बसाई। अतिभूल गई तब शोच करत अब जब शिर ऊपर भाई ६ मंदोदरी-विजयछंद । रामकि वाम जो भानी चोराइ सो लंकमें मीचु कि बेलि 'बईजू । क्यों रण जीतडगे तिनसों जिनकी धनुरेख न नांधिगईजू ॥ बीस बिसे बलवत हुते जो हुती हग केशव रूपरईजू। तोरि शरा- सन शंकरको पिय सीयस्वयबर क्यों न लईजू ७॥ वामदेव महादेव सरस्वती उक्लार्थः॥ रामचन्द्र देव हैं नर भी पानरको है इहा देवपत्ते ईश्वर जानो अर्थ रामचन्द्रईश्वर हैं श्रौ सुग्रीवादि बानर सब देवसैन्य हैं ।। ५ बरकहे बल अर्थ तपोषल अथवा शिवादि के वरसों सब प्रतीत्यो कहे पीतो तासों कहा घसाइ कहे जोर चलै अर्थ अब नाशको समय आयो सोई सुम सों ऐसे सीयहरणादि कार्य करायी है अथवा जेहि | शिव श्री ब्रह्मा के बरसों जग को जीत्यो सो वरदान सब बीतो काईते कि यह वर दीन रहो कि नर वानर को छोड़ि और सों तुमको भय न हैहै सो नर औ वानरही लरिये को आवत हैं सो वानर को प्रभाव तौ कछु यामें चलि है नहीं सो तुमको तव कहे सीयहरणादि समयमों यह सुधि भूलगई कि हमको नर वानरसों भय है जब शिर ऊपर आई है तब शोच करस हौ सौ तासों कहा बसाइ कहे जोर चलै अर्थ अब मृत्युत्ते रक्षाको कछु उपाय नहीं है ६ जो तुम्हारे हानमों सीतारूप जो सौंदर्य है ता कारकै रई कई बसी रहे ७॥ बालि बलीन बच्यो चरखोरिह क्यों बचिहो तुम प्रा- पनी सोरहि । जालगि क्षीरसमुद्र मथ्यो कहि कैसे न बांधि (हे पारिधि थोरहि ॥श्रीरघुनाथगनौ असमर्थन देखि विना रथ हाथिन घोरहि । तोखो शरारान शकरको जेहि सोच कहा तुव लक न तोरहि ८ मेघनाद-दोहा॥ मोको आगसु