रामचन्द्रिका सटीक। १५७ होइ जो त्रिभुवनपाल प्रबीन । रामसहित सब जग करौं नर वानर करि हीन विभीषण-मोटनकछंद॥कोहै अतिकाय जो देखिसके। को कुंभ निकुभ वृथा जो बकै॥ कोहै इद्रजीत जो भीर सहै । को कुभकर्ण हथ्यारु गहै १० ॥ जालगि कहे जालक्ष्मीरूप जे सीता है तिनके लिये सरस्वती जनार्थ ॥ | मेघनाद कहत है कि जो मन कहिये को हमको आज्ञा होइ तौ हम कहि यत हैं कि त्रिभुवनपाल कहे तीनों लोक के रक्षाकरणहार श्री प्रवीण कहे विवेकी या सों या जनायो कि केवल समष्टिही सों नहीं प्रतिपाल करत भक्तनपर अति कृपा शरणागतरक्षण शत्रुनाशादि कर्म यथोचित करत हैं ऐसे जे रामचन्द्र हैं तिनहीं करिकै सहित सब जग है अर्थ रामचन्द्रही सर्वत्र व्यात हैं अर्थ कि विष्णु हैं यथा वृत्तरनाकरे " म्परस्तजनगैलान्तरेभि दशभिरक्षरैः ॥ समस्त वाड्मय व्याप्त त्रैलोक्यमिव विष्णुना " इमको नर औ पानर करिके हीन करो कहे करि मानतहों अर्थ रामचन्द्र विष्णु हैं | वानर सब देवता हैं अगदहू सोरहे प्रकाश में कहा है कि कौन इहां नर वानर कोरे ।।१०॥ देखे रघुनायक धीर रहै । जैसे तरुपल्लव वात बहे ।। जोलौं हरि सिंधु तरेइतरै । तौलौं सिय लै किन पाह परै ११ | जौलों नलनील न सिंधु तरै । जौलों हनुमंत न दृष्टि परै॥ जोलौं नहिं अंगद लंकढही। तौलौं प्रभु मानहु बात कही १२ जौलौं नहिं लक्ष्मण बाण धरै । जौलौं सुग्रीव न क्रोध करै। जोलौं रघुनाथ न शीश हरें। तौलौं प्रभु मानहु पाहे परे १३ रावण-कलहसछंद ॥ परिकाज लाज तजिकै उठि धायो। |धिक तोहि मोहिं समुभावन आयो । तजि रामनाम यह बोल उचाखो। शिरमांक लात पगलागत माखो १४ ॥ अर्थ रघुनाथको देखि अतिकायादिकन के काहूके धीर न रहि है ११ १२ । १३ रापनापको तगि कारे छोड़ यह बोतु रापण वजारमा बजे
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