१५८ रामचन्द्रिका सटीक। कझो सरस्वती उतार्थः परि कहे शत्रुके काजसों लाज तनिकै उठिधायो है अर्थ रामचन्द्र के हाथ मृत्यु सो हमारी मुक्तिकैहै वामें चाहिये कि तू भाई है सहाय करै सो तू शत्रुता करत है जामें याकी मुक्ति न होह या तोको लान नहीं है भाई हैकै शत्रुको काम करत है तोको धिक् है जो मोहिं समु- भावत है कि रामचन्द्रसों न लगे अथवा मोहि कई मोहवश के रामको नाम जो जपत रह्यो ताको तजिकै यह बोल उचारयो कहे येती कथा करयो यह कहिकै पान में परत विभीषण के शिर में लात मारयो १४ ॥ करि हायहाय उठि देह सँभारेउ । लिय अंगसंग सब मं- त्रिय चारत । तजि अधबंधु दशकप उड़ान्यो। उर रामचंद्र जगतीपति पान्यो १५ दोहा ॥ मत्रिन सहित विभीषण बाढी शोम प्रकास । जनु अलि भावत भावतो प्रभुपद पद्मनिवास १६ चौपाई॥ निकट विभीषण आवतजाने । कपि- पतिसी तबहीं गुदराने ॥ रघुपतिसों तिन जाइ सुनायो। दशमुख सोदर सेवहि पायो १७ श्रीराम।। बुधिबलवत सबै तुम नीके । मत सुनली मंत्रिनहीके ॥ तब जो विचार पर सीह कीजै । सहसा शत्रु न श्रावन दीजै १८ अंगद-सुंदरी छंद ॥ रावणकोयह सांचहु सोदरु।पापु बली बलवंत लिये अरु ॥राकसवंश हमें हतने सब । काज कहा तिनसों हम सौ अब १९ वध्यविरोध हमें इनों अति । क्यों मिलि है हमसों तिनसों मति ।। रापण क्यो न तजो तवहीं इन। सीय हरी जवहीं वह निर्घन २० नल । चार पठे हनको मत लीजिय । ऐसेहि कैसे विदा करिदीजिय ॥राखिय जो प्रति जानिय उत्तम । नाहिं तो मारिय छोडि सवै भ्रम २१ ॥ १५ १६ पपि ने वानर है तिनके पति जे सुग्रीव है तिासों गुटगो कहे सहन भये १७ । १८ । १६ वभ्य कहे पथ करित्रलायक निर्धन कहे गरजा प्रसार २० चार कहे प्रत २१ ॥
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