रामचन्द्रिका सटीक । १५६ नील ॥ सांचेहु जो यह है शरणागत । राखिय राजिव- लोचन मोमत ॥ भीत न राखिय तौ प्रतिपातक । होइ जो मातु पिताकुलघातक २२ हनूमान-हरिलीलाछद ॥ जानों विभीषण न राकस रामराज प्रहाद नारद विशारद बुद्धि- साज ॥ सुग्रीव नील नल अगद जामवत । राजाधिराज बलिराज समान सत २३ दोहा ॥ कहन न पाई बात | सब हनूमंत गुणधाम ॥ कह्यो विभीषण पापुही सबन सुनाइ प्रणाम २४ सवैया ॥ दीनदयाल कहावत केशव हों अतिदीन दशा गह्यो गाढो । रावणके अयोधमें केशव बुडतहौं वरही गहि कादो ॥ ज्यों गजकी प्रहलाद कि कीरति त्योंही विभीषणको यश बाढो । भारतबंधु पुकार सुनौ किन भारत हौं तौ पुकारत ठाढो २५ ॥ जो माता औ पिता श्री कुलको घातकहू होय औ भीतहकै पावै ताको न राखौ वो बड़ो पातक है अथवा जो माता पिता श्री कुलघातकको पातक होत है सोई पातक जो भीतको ना राखै ताको होत है २२ प्रहलाद श्री नारद के समानहैं विशारद कहे धृष्ट परिपक इति बुद्धिकी साज जिनकी अर्थ मड्लाद व नारद सम तुम्हारो भक्त है "विशारद पण्डिते च धृष्ट इति मेदिनी ॥ २३१२४ बादो कहे बादो २५ ॥ केशव थापु सदा सह्यो दुःख पैदासन देखिसके न दुखारे । जाको भयो जेहि भांति जहाँ दुख त्योंही तहां तिहि भांति पधारे । मेरिय बार बार कहां कहुँ नाहिं नहूं के दोष विचारे । बूडतहौं महामोहसमुद्र में राखत काहे न राखनहारे २६ हरिलीलाछंद ॥ श्रीरामचन्द्र प्रतिमारतवंत जानि । लीन्हों बोलाय शरणागत सुःखदानि ॥ लंकेश आउ चिरजीवहि लंकधाम । राजा कहाउ जग जोलगि
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