पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/१६९

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रामचन्द्रिका सटीक। मन्त्री जिते पछि देखो सबै ॥राखिजै जातिको भांतिको वश को साधिजे लोकमें लोक पर्लोकको । आनिकै पांपरो दै सुलै कोशले आशुही ईश सीताहिले श्रोकको १० रावण ॥ लोकलोकेश सों शोचि ब्रह्मा रचें आपनी आपनी सींवसो सोरहै । चारि बाह घरे विष्णु रक्षा करें बात सांची यहै वेदवाणी कहै । ताहि भ्रूभंगही देवदेवेशसों विष्णुब्रह्मादिदै रुद्रज़ संहरै। ताहिहों छोडिके पांय काके परौं भाजु ससार तोपांय मेरे परै ११ मदिराछंद ॥ रामको काम कहा रिपु. जीतहिं कौन कबै रिपुजीत्यो कहा । बालिबली छलसों भृगुनंदन गर्व सहे द्विज दीन महा।। दीन सों क्यों क्षिति क्षत्र हत्यो बिन प्राणनि हैहयराज कियो। हैहय कौन वह बिसखो जिन खेलतही तुम्हें बाधिलियो १२ ॥ जा स्त्रीके सग राज्याभिषेक होइ सो देवी कहावै " देवी कलाभिषेका यामित्यभिधानचिन्तामणि १० कम्पतिके अतमें ब्रह्मा सृष्टि रचत है। विष्णु रक्षा करत हैं सो ताहि कहे लोक सृष्टिको श्री देवेश इद्र श्री विष्णु श्री ब्रह्मादि दै जे देव हैं जिन्हें रुद्र जे महादव हैं ते 5 जो भौंह है ताके भगही टेढ़ी करनेही सो सहार कालमों संहार करिडारत है ११ छत्र कहे छत्रवर्ण १२॥ अंगद-विजयछद ॥ सिंधुतखो उनको बनरा तुमपै ध- नुरेख गई न तरी । बांध्योइ बांधत सोन बध्यो उन बारिधि बांधिक बाट करी ॥ अजहूँ रघुनाथप्रताप की बात तुम्हें दशकठ न जानिपरी । तेलनि तूलनि पूछ जरीन जरी जरी लक जराइजरी १३ मेघनाद ॥ छोडिदियो हमहीं बनरा वह पूंछ कि आग न ल क जरी । भीरमें अक्ष मखो चपि बालक बादिहिं जाइ प्रशस्ति करी ॥ ताल बिधे अरु सिंधुबंधे यह