१६८ रामचन्द्रिका सटीक। चेटक विक्रम कौन कियो । वानरको नरको बपुरा पलमें सुरनायक बांधिलियो १४ ॥ षाध्योइ कहे हनुमानको बधन तुम काहू विधिसों करिबेहू कस्यो ताहू पर बांधत न बन्यो तेल औ तूल कहे रुई युक्त जो वस्तु होति है सो विशेष | जरति है सो या प्रकारकी पूंछ तुम करी सो न जरी और केवल सुवर्ण नौ रनन में अग्नि ज्वजित नहीं होति परतु तुम्हारी लका तृणादि रहित केवल रत्नादि के जरायसों जरी जरत भई राम के प्रभावसों ऐसी अनहोनी बातें होती हैं ताहूपर तुम्हें नहीं जानि परतो इति भाषार्थ १३ बादि कहे या प्रशस्ति कहे स्तुति सप्तालबेध्यो औ सिंधुवांध्यो यह चेटक कहे भगर विद्या है सरस्वती उक्वार्थः ॥ जो रामचन्द्र तालवधन सिंधुबधन करयो सो तो चेटक कहे भगर विद्यासम है अर्थ खेलसग है या कौन विक्रम कहे अतिवल कियो है " विक्रमस्त्वतिशक्तिता इत्यमरः " अर्थ बैं चाहे तो त्रै नोक्य को सहार करिडारे सिंधुवधादि सदृश कर्मन में उनको कौन है ऐसे प्रबल वै न होते तो जिन हम पल में सुरनायकको बाघ लियो ते वानर नौ नर को धपुरा हैनाते अर्थ हम इद्रलोकादि में जाइकै इद्रादिको जीत्यो नौ वै हमपर चढ़ि पाये हैं हम बरासम कछू करि नहीं सकत अथवा बपुरा समुझि हम पर चढ़ि आये हैं १४ ॥ अगद ॥ चेटकसों धनुभंग कियो प्रभु रावरेको प्रतिजी रनहो। बाणसमेत रहे पचिकै तुम जासहॅपै न तज्यो थलुहो।। बाण सु कौन बली बलिके सुत वै बलि बावन बांधिलियो । श्रोई सो तो जिनकी चिरचेरिन नाच नचाइकै छाडि दियो १५ रावण ॥ नील सुखेन हनू उनके नल और सबै कपिपुंज तिहारे । आठहु पाठ दिशा बलि दै अपनो पदुलै पितु जालगिमारे॥तोसे सपूतहि जाइकै बालि अपूतनकी पदवी पगु धारे । अगद संगले मेरो सबै दल भाजुहि क्यों नहने वपुमारे १६ दोहा ।।जो मुत अपने वापको वैर न लेड प्रकामातासो जीतही मन्यो लोग कहें तनि त्रास १७ ॥ श्रम
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