- रामचन्द्रिका सटीक । १७५ समेत अध उखारि हौं उलटी करौं । बाजुराज कहां विभी- षण बैठि हैं तेहिते डरौं ३४ दोहा । अगद रावणको मुकुट लै करि उड़यो सुजान ॥ मनो चलो यमलोकको दशशिर को प्रस्थान ३५॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिदिरचितायामङ्गदरावणसवाद- वर्णननामषोडश. प्रकाशः १६॥ क्षीर कहे जल "क्षीरं पानीयदुग्धयोरिति हैमा" ३४ । ३५ ॥ इति श्रीमजगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायारामभक्किमकाशिकायामङ्गदसवादेवर्णनभाम षोडश प्रकाशः॥१६॥ दोहा॥या सत्रहें प्रकाशमें लकाको अवरोध ॥ शत्रुचमू- वर्णन समर लक्ष्मणको परबोध १ अंगद लै वा मुकुटको परे रामके पाइ॥ राम विभीषणके शिरसि भूषित कियो बनाइ २ पद्धटिकाछंद ॥ दिशि दक्षिण अंगद पूर्व नील । पुनि हनूमत पश्चिम सुशील ॥ दिशि उत्तर लक्ष्मणसहित राम । सुग्रीव मध्य कीन्हें विराम ३ सँग यूथप यूथपबल विलास । पुर फिरत विभीषण अासपास ॥ निशि वासर सबको लेत शोध । यहि भांति भयो लंकानिरोध ४ तब रावण सुनि लकानिरोध गण उपजो तन मन परम क्रोध ।। राख्यो प्रहस्त हठि पूर्वपौरि । दक्षिणहि महोदर गयो दौरि ५ भयो इंद्रजीत पश्चिम दुवार । हे उत्तर रावण बल उदार ॥ कियो विरूपाक्ष थिति मध्यदेश । करै नारांतक चहुँधा प्रवेश ६ प्रमिताक्षराछंद ॥ अति दार द्वारमह युद्ध
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