१७६ रामचन्द्रिका सटीक । |भये | बहुऋक्ष कँगूरन लागि गये ॥ तब स्वर्णलंकमह शोभभई । जनु अग्निज्वाल महॅ धूममई ७॥ अवरोध घेरनो औ विभीषण करि शत्रु जो रावण है ताके चमूको वर्णन है परमोधु मूर्छा १ । २ रामचन्द्र के श्री लंका के मध्य में सुग्रीव | विश्राम कीन्हें हैं ३।४।५।६ छद उपनाति है ७॥ दोहा || मरकतमणिके शोभिजै सबै कॅगूरा चार ॥ श्राइगयो जनु घातको पातकको परिवार ८ कुसुमविचित्रा बद | तब निकसो रावणसुत शूरो । जेहि नर जीत्यो हरि बल पूरो॥ तपबल माया तम उपजायो । कपिदलके मन संभ्रम छायो दोधकछंद ॥ काहुन देखिपरै वह योधा। यद्यपि हैं सिगरे बुधिबोधा ॥ शायकसो अहि नायक साध्यो । सोदरस्यो रघुनायक बांध्यो १० रामहिं बांधि गयों जब लका। रावणकी सिगरी गइ शका ॥ देखि बंधे तब सोदर दोऊ। यूथप यूथ त्रसे सब कोऊ ११ स्वागताछंद ॥ | इद्रजीत तेहि लै उरलायो। बाजु काज सव भो मनभायो॥ के विमान अधिरूटनिघाये। जानकीहि रघुनाथ देखाये १२ राजपुत्रयुत नागनि देख्यो । भूमियुक्त तरु चदनलेख्यो। पन्नगारि प्रभु पन्नगशाई । काल चाल कल जानि न जाई १३ दोहा॥ काल सर्प के कवलते छोरत जिनको नाम ॥ बॅधे ते ब्राह्मणववनवश मायामपहि राम १४ ॥ फंगूरन में ऋक्ष लपटे हैं नासा मानों परयातमणिही के फंगरा शोभित [ हैं पातक देवदाप प्रमदोपादि ८ हरि इद्र बुद्धिबोधा कहे उद्धि युक १० ॥ ११ लेदि रारण इद्रीत के घर में लगाने १२ भूमि में युग कहे गिरे चदनभ ह नागगुक रहत हैं इ ग्वगुन सोता यह कहत भई कि हे पन्नगारि म पनगशायी! पनग ने सपे है जिनके परि कहे भक्षक
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