२०३ रामचन्द्रिका सटीक । रामको रथमध्य देखत क्रोध रावण के बढ्यो। बीस ना- हुनकी शरावलि व्योमभूतलसों मढयो॥शैलढे सिकतागये सब दृष्टिके बलसहरे।ऋक्ष वानर भेदि तत्क्षण लक्षधा छत्तना करे ४० सुंदरीबद॥ बाणन साथ बिधे सब वानर । जाय परे मलयाचलकी धर ॥ सूरजमडल में यक रोक्त । एक प्रकाशनदी मुख धोवत ४१ एक गये यमलोक सहे दुख । एक कहैं भवभूतन सौ रुख ॥ एकति सागरमांक परे मरि । एक गये बड़वानलमें जरि ४२ मोटनकछद ॥श्रीलक्ष्मणको पकखोजबहीं। छोड़योशर पावकको तबहीं। जाखो शर- पजर छार करयो। नैर्ऋत्यनको अतिचित्त डरयो ४३ दौरे हनुमंत बली बलसों। ले भगदसग सबै दलसों ॥ मानों | गिरिराज तजे डरको । धेरे चहुंओर पुरदरको ४४॥ सिकता बारू दृष्टिके बल कहे पराक्रम अर्थ अतिवाणांधकार मों काहू को कछदेखि नहीं परत छतना करे मधुमक्षिकादिकन के छाता मागे मधु रहत है ४०१ ४१ । ४२ नैत्य राक्षस ४३ पुरदर इद सम राषण है गिरिराजनके सहश अंगदादि हैं ४४ ॥ हीरकछंद ॥ अगद रणअगन सब अंगन मुरझाइके। ऋक्षपतिहि अक्षरिपुहि लक्षगति बुझाइ ॥ वानरगण बाणनसन केशव जवहीं मुखो। रावन दुखदावन जग- पाक्न समुहे जुलो ४५ ब्रह्मरूपकछद ॥ इंद्रजीत जीत आनि रोकियो सुबाण तानि । छोड़दीन बीरबानि कानके प्रमाण मानि ॥ शिवप्रताप कादि चाप चर्म वर्म मर्म छेदि जातभो रसातले अशेष कंठमाल भेदि ४६ दडकछद ॥सूरज मुशल नील पट्टिश परिघ नल जामवंत असि हनू तोमर महारे हैं। परशा सुखेन कुंत केशरी गाय शूल विभीषन गया
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