पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२१४

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२१२ रामचन्द्रिका सटीक । तलनि गगाजीकी शोभा सबहीको सुखदाई है॥यमुनाको जल रह्यो फैलिके प्रवाहपर केशोदास बीच बीच गिराकी गोराई है। शोभन शरीरपर कुकुमविलेपनको श्यामलदुकूल झीन झलकति झाई है ३२ सगीव-चद्रकला। भवसागरकी जनु सेतु उजागर सुदरता सिगरी बसकी । तिहुँ देवनकी युतिसी दरशै गति शोषै त्रिदोषनके रसकी। कहि केशव वेदत्रयी मतिसी परितापत्रयी तलको मसकी । सब बर्दै त्रिकाल त्रिलोक त्रिवेणिहि केतु त्रिविक्रमके यसको ३३ ॥ चतुरवदन अक्षा पंचवदन शिव पदवदन स्वामिकार्तिक सहसवदन शेष तिन करिके सहसगति कहे सहसमकार सो गाई है अथवा सहस्रगति कहे सहस्रधारा सातलोक भू अंतरिक्षादि सातद्वीप अबूद्वीपादि सात रसातल अतल वितलादि ३२ सेतु सम जाके मग पाणी भवसागर पार होत हैं। तीनों देव ब्रमा विष्णु महेश त्रिदोष वात पित्त कफको जो रस कहे पल है | ताकी गतिको शोषति है अर्थ कफ पित्त पात दुःखद दोषकृत जो मृत्यु है तासों बचावति है एसी त्रिदेवनकी युतिहू है वेणीहू है वेदत्रयी ऋग्वेद यमा मामाद पानापनी अपायक प्राधभौतिक आधदैविक को तजको अधाभामा यसकी कई यायो ई अपायो गेमा वेइमतिह रेणीहू है नियमन रवाना वीगि मा तीनोलोक नाप्यो । निन तीने पादविक्षपरो त्रिरूप पनामाई २३॥ विभीषण-दम् ॥ ननली वेणीती त्रिवेणीशुभशोभि- जति एक सुरपरमारग रिभान है। एक कहें पूरण अ- नादि जो मान कोऊतापो यह केगोदास द्रव्यरूप गात है ।मत्रमुसार सब गोमार मेरे जान कौनो यह अद्भुत युग अवदातहै । दरश परशहूत घिर चर जीवनको कोटि कोटि जन्मकी कुगंध गिटिजात है ३४ भुजगण्यानबद ॥ भरद्वाजकी नाटिका राम देखी। महादेवकीसी वनी चित्त