पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचदिका सटीक। वामी करत है सोड देना करत' ४ हाड को वहस गा अप्रवासी बहमारि मतालोको धूनि उडाउत है श्रीपना तारिगे फूल |नकी अनिष्किरि नशाइ धेने हैं अर्थ दगइ लेत हैं श्री देवना तो भी मेपही है औ रामचन्द्र के दशनों अपधासिनही पता नही लागत सो | मानो परस्पर होड़ किये हैं शिदेखिये भीगी पलक तागति ई यामें प्रसिद्ध विषय हेात्प्रेक्षा हे ५ ॥ तारकछद ॥ सिगरे दल अधपुरी तब देसी। अमरा वतिते अतिसुदर लेसी ॥ चहुंओर विराजति दीरघ खाई। शुम देवतरगिनिसी फिरि आई ६ अतिदीरघ कचनकोट पिराजै। मणि लाल कँगूरनकी रुचि राजै ॥ पुर सुदर मध्य लसै छवि छायो । परिवेष मनो रविको फिरि आयो ७ दोहा ॥ विविधपताका शोभिजें ऊचे केशवदास ॥ दिवि देवनके शोभिजें मानहुँ व्यजनविलास ८ विजयबद ॥ चढी प्रतिमदिर शोभ वटी तमणी अपलोकनको ग्घुनदनु । मनो गृहदीपति देह धरे सुविधा गृहदेरि निमोहति है मनु ॥ किधों कुलदेवि दिये अनि केशव के पुरदेपिन को हुलस्यो गन । जहीं सो तहीं यहि भाति लसे दिवि देविन को मद घालति हैं मनु॥ देवनरगिनि गगामम कयो नागों रिमलजल यात जानो ६ रसिम अयो-यापुरी है परिवपमम पचन को है ७ व्यजन पखा ८ अपनी मर- रतादि देखाइ देनिनकी सुदरतादिको मन हरि करती है श्राधपुरी की स्त्री देविनहू सो अाधक सुदरी है हान भानाधे ॥ दोहा । प्रतिऊंचे मदिरन पर चढी सुदरी साधु ।। दिवि देवनको करति है मनु बातिश्य अगाधु १० नोटकछद ॥ नर नारि भली सुरनारि सबै । तिनको उपरै पहिचानि अवै ॥ मिलि फूलनकी बर बरपा । अरु गावति हैं जय