पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२५०

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२४६ रामचन्द्रिका सटीक । परमसुखद अहमोकि जे भगवान् हैं ते नहीं श्रावत युक्ति यह कि द्वारपै बाघ बँथ्यो देखि बालक घरमें कैसे आइसके फैस हैं अथवाघ कि दान औ दया औ शील ये जे जीवके सखा कहे हित हैं तिनको बिझुकै कहे डेरवाइकै पावन नहीं देत औ शूरनानि जे अनेक गुणरूपी भिक्षक हैं तिनको विझका क्रोधित करि देते हैं अर्थ ऐसे डेरावत हैं जासों गुणहूं क्रुद्ध है फिरि जात हैं औ सुष्टु जे धी बुद्धि हैं अर्थ पुण्यमार्गमें प्रवृत्त जे बुद्धी हैं तेई साधु सुरभी गौवें हैं ते सब भाजिगई काहे ते भूरि कहे बड़ो भ्रम देखाइकै भजाइ देते हैं औ सज्जनन के सत्संगरूपी जबरू हैं तेज जिनको डरत हैं डरिकै डर मंदिर २ में नहीं श्रावत औ वृषभपद श्लेष है बैल औ धर्मसों जैसे बाघ को देखिकै बैल विड कहे भागि जात हैं तैसे अघवाधनको देखि धर्मादि भागत हैं पापके संयोय ते जीवके हितसाधक | जे दान दयादि हैं ते सब नशिनात हैं इति भावार्थः १६ ॥ दोहा ॥ प्रांखिन अक्षत आंधरो जीव करै बहुभांति ॥ धीरन धीरज बिन करै तृष्णा कृष्णा राति २० तृष्णा कृष्णा षटपदी हृदयकमलमों वास ।। मत्तदंतिगलगंड युग नर्क अनर्क विलास २१ ॥ तीनि छंदनमें तृष्णाको व्यवहार कहत हैं तृष्णारूपी जो कृष्णा राति कहे कृष्ण पक्षकी राति है सो प्राखिन अक्षत कहे आंख तो है पर जीवको प्रांघरो करति है अर्थ तृष्णायुक्त प्राणी को श्रांखिनसों मापनो अपमा- नादि नहीं देखि परत श्री कृष्णा रातिहू में अंधकार में घटपयादि वस्तु आखिन सों नहीं देखिपरत औ धीरनको धीर विना करिदेति है अर्थ कहूं कछु पाइबो होइ तौ तृष्णायुक्त माणी कैसोऊ धीर होइ तौ धीर छोडि धावत है औ रातिमें अंधकारमें चौरादि भय सों बड़े धीरज धीर विन है जात हैं २० कृष्णा कहे श्याम जो तृष्णारूपी षट्पदी भ्रमरी है ताको हृदयरूपी कमलमें वास है ता तृष्णाको नरक औ अनरक कहे स्वर्ग को विलास दुवौ मत्तदंती के गल कहे गलत अर्थ मदसों चुस्त दुवो गंडस्थल हैं अर्थ जैसे भ्रमरी कमलमों बसति है गजन के गंडस्थलन प्रति पायो करति है तैसे तृष्णा नरकभोग स्वर्गभोगपति पायो करति है सो उपार जीव को नहीं करन देति जालों जीव मुक्त होइ २१ ॥