२६६ रामचन्द्रिका सटीक । लोकनाथ जे ब्रह्मा है तिन अभिषेककी घटिका आई विलोकिकै निज हाथों रघुनाथ को अभिषेक की कहे करयो पुनि फेरि शुभगाथ कहे वेदविहित गाथको उच्चार करयो इत्यर्थः पुनि कहे ब्रह्मा के अभिषेक किये बादि वशिष्ठादिक जेते मुनिराय ताठौरहुते तिनहुँन अभिषेक करि शुभ गाथ उच्चरी इत्यर्थः ३० स्वयंभु कहे ब्रह्मा ३१॥ दोहा ॥ दीन्हो मुकुट विभीपणे अपनो अपने हाथ ॥ कंठमाल सुग्रीवको दीन्हो श्रीरघुनाथ ३२ चंचरीछंद ॥ माल श्रीरघुनाथके उर शुभ्रसीतहि सो दई । आफियो हनुमंतको तिन दृष्टिके करुणामई॥ौर देव अदेव वानर याचकादिक पाइयो । एक अंगद छोड़िके ज्वइ जासुके मन भाइयो ३३ अंगद ॥ देव हो नरदेव वानर नैऋतादिक धीर हौ । भरत लक्ष्मण आदिदै रघुवंशके सब वीर हो॥श्राजु मोसन युद्ध माड़हु एक एक अनेककै । बापको तब हौं तिलोदक दीह देहुँ विवेककै ३४ राम-दोहा ॥ कोऊ मेरे वंशमें करिहै तोसों युद्ध ॥ तब तेरो मन होयगो अंगद मोसों शुद्ध ३५ विधिसों पायँ पखारिकै राम जगतके नाह ॥ दीन्हेउ गांव सनौढियन मथुरामंडलमाह ३६ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायां रामस्यराज्या- भिषेकवर्णनन्नाम षड्विंशःप्रकांशः ॥२६॥ आफियो कहे दियो तिन सीताजू ३२ । ३३ । ३४ । ३५ । ३६ ॥ इति श्रीमज्जगज्जननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां षइविंशः प्रकाशः ॥ २६ ॥ दोहा॥ सत्ताइसे प्रकाशमें रामचन्द्र सुखसार ॥ ब्रह्मा: दिक प्रस्तुति विविध निजमतिके अनुसार १ ब्रह्मा-झूलना
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