२६८ रामचन्द्रिका सटीक । रूपी जे सिंह हैं तिनों साथ कहे मित्रता है तो सिंहसों मित्रता औ गाय की रक्षा यह विरोध है ३ यामें परिसंस्थालंकार है ग्रंथन में लिख्यो है कि गाय ब्राह्मणके वैरसों ऐसो पाप होत है सुंदर वर्ण अक्षर कविता में परिवेको देवताई कहे देवनाकी प्रतिमाही ढांकी आदिकी गढ़निसों गढ़ो देखियत है और कोऊ पाणी नहीं गढ्यो जात अर्थ ताड़नाको नहीं माप्त होत ४॥ पितर ॥ बैठे एक छत्रतर छांह सब क्षितिपर सूरकुलक- लश सुराहुहितमति हो । त्यक्तवामलोचन कहत सब केशौ- दास विद्यमान लोचन दै देखियत अति हो ॥ अकर कहावत धनुषधर देखियत परमकृपालु पै कृपाणकरपति हौ । चिर चिर राज करो राजा रामचन्द्र सब लोक.कहै नरदेव देव. देव गति हौ ५ अग्नि ॥ चित्रहीमें आज वर्णसंकर विलो- कियत व्याहहीमें नारिनके गारिनसों काज है । धजै कंप योगी निशि चक्र है वियोगी द्विजराज मित्रद्वेषी एक जलद- समाज है । मेधै तो गगनपर गाजत नगर घेरि अपयश डर यशही को लोभ अाज है । दुःखहीको खंडन है मंडन सकल जग चिर चिर राज करौजाको ऐसो राज है ६॥ या विरोधाभास है विरोधपक्ष राहुग्रह अविरोध सुराह कहे सुमार्ग स्यक्त कहे त्यागे वामलोचन औ वाम कहे कुटिल लोचन अर्थ काहूसों टेढ़े लोचन करि नहीं ताकत विद्यमान कहे प्रत्यक्ष अकर कहे दंडरहित अर्थ काहूको तुम दंड द्रव्य नहीं देते कृपाण जो करवाल है सो है कर हाथ में जिनके ५ या परिसंख्या है वर्ण जे अरुणादि हैं तिनको संकर मिलाइयो द्विजराज चन्द्रमा मित्र सूर्य जाको राज सकल जगको मंडन भूपण है ऐसे जे तुम हौ ते चिर चिर कहे बहुकाल पर्यंत राज करौ ६ ॥ वायु ॥ राजा रामचन्द्र तुम राजहु सुयश जाको भूतल के आसपास सागरको पाससो। सागरमें बड़भाग वेष शेष नागतको जपै सुखदानि खानि विष्णुको निवाससो॥ विष्णु
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