सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६६ रामचन्द्रिका सटीक । ज़ में भूरिभाव भावको प्रभाव जैसो भवजूके भालमें विभूति को विलाससो । भूतिमाहँ चंद्रमासो चंद्रमें सुधाको अंशु अंशुनिमें केशोदास चंद्रिका प्रकाशसो ७ देवगण ॥ राजा रामचंद्र तुम राज करौ सव काल दीरघ दुसह दुख दीनन को दारिये । केशोदास मित्रदोष मंत्रदोष ब्रह्मदोष देवदोष राजदोष देशते निकारिये ॥ कलह कृतघ्न महिमंडल के बरिबंड पाखंड अखंड खंड खंड करिडारिये। वंचक कठोर ठेलि कीजै वाट पाटबाट झूठ पाठ कंठपाठकारी काठ मारिये - ऋषिगण ॥ भोंगभार भागभार केशव विभूति- भार भूमिभार भूरि अभिषेकनके जलसे। दानभार गानभार सकल सयानभार धनभार धर्मभार अक्षत अमलसे॥ जय | भार यशभार राजभार राजत है रामशिर आशिप अशेप मंत्रबलसे । देश देश यत्र तत्र देखि देखि तेहि दुख फाटत हैं दुष्टनके शीश दाह्यो फलसे॥ पास कहे फांस अंशु किरणि ७ दारिये कहे नाश करत हौ वंचक ठग कठोर निर्दय झूठरूपी जो पाठ है ताके जे कंठपाठकारी हैं अर्थ जे गूढ़ही कह्यो करत हैं विभूति ऐश्वर्य ८॥६॥ केशव-विजयाछंद । जाइ नहीं करतूति कही सव श्री | सविता कविता करि हारो। याहीते केशवदास अशीश पढ़े अपनो करि नेकु निहारो॥ कीरति देवनकी दुलही यश दूलह श्रीरघुनाथ तिहारो । सातौ रसातल सातहु लो- कन सातहु सागरपार विहारो १० किन्नर, यक्ष, गन्धर्व- रामलीलाछंद ॥ अजर अमर अनंत जय जय चरित श्रीरघुनाथ । करत सुर नर सिद्ध अचरज श्रवण सुनि सुनि गाथ॥ काय मन वच नेम जानत शिलासम परनारि। शिला