पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२७०

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रामचन्द्रिका सटीक । ते पुनि परमसुंदरि करत नेक निहारि ११ चमर ढारत मातु ऊपर पाणि पीड़ा होइ । विषदंड ज्यों कोदंड हरको टूक कीन्हो होइ ॥ साधु होइ असाधु राखत दिजनहीको मान । सकल मुनिगण मुकुटमणिको मर्दियो अभिमान १२ ॥ सविता सूर्य १० शिलाते सुंदरी अहल्याको कस्यो है ११ विषदंड कहे पवनारी को दंड मुनिगणमुकुट मुनि नारदकी कथा तुलसीकृत रामायणमों प्रसिद्ध है वानर सदृश मुखकरि दियो है अथवा परशुराम छंद उपजाति है १२॥ सूर सुंदर सरसरविरति करत रतिकहँ लालि । एक- पत्नीव्रत निबाहत मदनको मद घालि || सुखद सुहृद सपूत सोदर हनत नृप जा काज। पलकमें सोइ राज छोड्यो मातु पितुकी लाज १३ मंथरासों मोद मानत विपिन पठयो पेलि । शूर्पणखाकी नाक काटी करन आई केलि ॥ चंचु चापत अंगुरीशुक ऐंचि लेत डराइ । बंधुसहित कबंधके उर मध्य पैठे घाइ १४ सर्वथा सर्वज्ञ सर्वग सर्वदा रस एक । अज्ञ ज्यों सीता | विलोकी व्यग्र भ्रमत अनेक ।। बाण चूकत लक्ष्यको कोगने केतिकबार। ताल सातौ बेधियो शर एक एकहि वार १५ सापराध असाधु अति सुग्रीव कीन्हो मित्र । अपराध बिन अतिसाधु बालिहि हन्यो जानि अमित्र ॥ चलत जब चौ- गानको लैवलत दल चतुरंग । देवशत्रुहि चले जीतन ऋक्ष वानर संग १६ भूलिहू जा तन निहारत गरु सो गिरिन समान । निगरु देखो भये गिरिगण जलधि में ज्यों पान ।। यतन यतननि तरण सरयू डोडिडोलत डीठि गये सागर- पार दै पगु प्रकट पाहन पीठि १७॥ सब पर रतिप्रीति रचिकै सब कीर्तिकी पीतिकी लालि कहे लालसा इच्छा करत हो ौ आश्चर्य पक्षमें रति जो कामकी स्त्री है ताको लालि कहे लालसा