पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/२९०

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२६० रामचन्द्रिका सटीक। उत्लत्य दा नृत्येत् करणैरनालसन्मितैः । तदोत्प्लुत्यायकरणं नृत्यं नृत्यविदो विदुः ( अथवा उलथानृत्य को लक्षण नामार्थ ही है ) १० अथ टेंकीनृत्यलक्षणम् ॥ पादौ समौ यदा यस्मिन् पा लागताना । उत्प्लु- त्योत्पादयेचित्रं तदा टेंकीति कथ्यते ११ अथालमनृत्यलक्षणम् ॥ भूमावेकं समास्थाय द्वितीयं पूर्ववद्यदा । पानवेचरणं चारुतं वीशञ्चतुरा विदुः ( याही को नामान्तर अमल है ) १२ अथ दिण्डनृत्यलक्षणम् ॥ उत्प्तुत्य चरण- द्वन्दं वहनिप्पीडनोपमम् । परिभ्राम्यायनी याति यदि तदिण्डमुच्यते १३ अथ पदपलीनृत्यलक्षणम् ॥ पुरप्रसार्या चरणं लङ्घयेदपरांघ्रिणाम् । सुलूपूर्वं तदान्वा प्रोक्ता लड़ितजविका ( याहीको अन्वर्थ पदपलटी है ) १४ अथ हुरुमयीनृत्यलक्षणम्॥ अलाता परिवृत्यांगं पादपृष्ठं गतं यदा । अलातांघ्रौ पृष्टगते शीघ्रमन्यांघ्रिलङ्घयेत् ॥ लवयेदक्षिणान्येन प्रोक्ता हुरुम- यी नटैः १५ अथ निशङ्कनृत्यलक्षणम् ।। सुलूपूर्वपदोत्प्लुत्य मिलितौ चरणौ समौ । दूरम्भूमौ निपतितः स निशङ्कः प्रकीर्तितः १६ अथ चिण्डनृत्य- लक्षणम् ॥ विडचिण्डुः कालचारी इति चिण्डुविधा भवेत् । यदि पिलस्तु मुख्योत्र निवद्धोविडचिण्डुकः ॥ तत्तज्जात्यनुकारेण कालचारीति की- र्तितः । तालतानसुलूतुंगधीध्वनिपेशलम् ॥ वादते तुडते केचिद् गीतेन यतिपूर्वकम् । तत्तज्जातियुतं नृत्यं नानानितिनिधितम् ॥ चारुपाटानुचं- चत्रकिंकिणीध्वनिपेशलम् । कालासैरपि लास्यास्रैरङ्कजैरन्तरान्तरा ॥ धृत- हस्तत्रिशूलादि यत्र नित्यं समाचरेत् । तदा धीरैः समाख्यातं चिण्डनृत्यं | मनोहरम् १७ ॥६॥ ७ रसवेष कहे रस स्वरूप अर्थ शृंगारादि जे नवरस हैं तिनमें जा रसको प्रबंध गावती ता रसके रूप आप है जाती हैं और ब- हुत प्रकारसों रसस्वाद को बर्षती हैं भाव कहे चेष्टा हस्तक हस्तक्रिया रंगमहल में स्त्रियन के पांवकी औ पखावज की तालसहित प्रति धुनि जो झाई शब्द है ताहूको गीत सुनियत है सो मानों विचित्रमति जे स्त्री पुरु- पन के चित्र हैं ते ताही विधि पांवकी औ पखावज की ताल दैकै ताही विधि गीतको गाइ सब संगीत को पढ़त हैं ८।६।१०॥ घनाक्षरी ॥ अपधन घायन विलोकियत घायलनि घने सुख केशोदास प्रकट प्रमान है । मोहै मन भूलै तन नयन रुदन होत सूखे शोचपोच दुख मारण विधान है ॥ आगम