पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३१०

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रामचन्द्रिका सटीक । ३१३ विशेष हैं तिनसों युक्त है औ बहुत जे काम कहे अभिलाषित फल हैं तिन सों फली है कमलाकी वासस्थली कैसी है करुणामय जे भगवान हैं ते हैं जहां औ बहुत जे काम्य पदार्थ तिनसों फलीयुक्त है अर्थ जहां सब अभि- लाषित पदार्थ मिलत हैं “कामः स्मरेच्छाकाम्येषु इति हेमचन्दः" वाटिका पक्ष रंभा केरा प्रानंदवनी यक्ष अप्सरा १६ ॥ कमलछंद । तरुचंदन उज्ज्वलता तन धरे । लपटीनव नागलता मनहरे ॥ नृप देखि दिगंबर बंदनकरे।चित चंद्र कलाधररूपनि भरे १७ अतिउज्ज्वलता सब कालहु वसे । शुक केकि पिकादिक कंठहु लसै ॥ रजनी दिन अानंदकंदनि रहै। मुखचंदनकी जन चंदनि अहै १८ ॥ जा वाटिकामों चंदनवृक्ष चिर कहे बहुतकालसों चन्द्रकलाधर जे महादेव हैं तिनके रूपनको धरे हैं कैसे हैं चंदनवृक्ष औ महादेव उज्ज्वलता जो श्वेतता है ताको तन में धारण करे हैं चंदनक्षहू श्वेत हैं महादेव के अंगऊ श्वेत हैं नागलता कहे नागवेलि औं नाग सर्परूपीलता औ दिगंवर नग्न दुवौ हैं महादेवको ईश्वरतासों औ वृक्षनको अति अद्भुतता सों नृप सब वन्दना करत हैं १७ फेरि वाटिका कैसी है कि जानो सीताकी दा- सिनके मुखचंदन की चांदनी है कैसी है वाटिका नौ चांदनी सब कालहू को सव समयमों उज्ज्वलता कहे. स्वच्छता औ शुक्लता वसति है कैसी है वाटिका शुकादि पक्षिन को कट कडे शब्दसहित लसति है अर्थ अनेक शुकादि पक्षी जामें बोलत हैं औ. चांदनी शुकादिकनके शब्द सरिस जे अनेक विधि परस्पर बोलती हैं तिन सहित है औ रातो दिन दुवौ आनंद की कंदनि कहे जर है अर्थ रातोदिन सुखद है वा चंदकी चांदनी राति ही को सुखद होति है मुखचंदकी चांदनी रातो दिन सुख देति है इति भावार्थः शुक केकि पिकादिक के मुख बसै कहूं यह पाठ हैं तहांऊ मुख कहे शब्द जानौ अर्थ वहीं है "मुखं निस्सरणे व प्रारम्भोपाययोरपि। संध्यन्तरे नाटकादेः शब्दपि च नपुंसकमिति मेदिनी" १८ ॥ तोटकछंद ॥ सब जीवनको बहुसुक्ख जहां । विरही जनही कहँ दुःख तहां ॥ जहँ अागम पौनहिंको सुनिये ।