पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२२

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रामचन्द्रिका सटीक । ३२५ किधौं दिविते गिरी भुव आनि ५४ सींचि मंत्र सजीव यौवन जीउठी तेहिकाल | पूंछियों मुनि कौनकी दुहिता बहू अरु बाल | सीताज॥ हौं सुता मिथिलेशकी दशरथपुत्रक- लत्र। कौन दोष तजी न जानति कौन आपुनु अत्र ५५ मुनि पुत्रिके सुनि मोहिं जानहि वालमीकि द्विजाति । सर्वथा मिथिलेशको गुरु सर्वदा शुभ भांति ।। होहिंगे सुत दै सुधी पगु धारिये मम प्रोक । रामचन्द्र क्षितीशके सुत जानि हैं तिहुँ लोक ५६ सर्वथा गुणि शुद्धसीतहिं लैगये मुनिराइ । औपनी तपसानकी शुभसिद्धिसी सुखपाइ ॥ पुत्र दै भये एक श्रीकुश दूसरो लव जानि । जातकर्महि श्रादिदै किय वेद भेद बखानि ५७ दोहा । वेद पढ़ायो प्रथमहीं धनुर्वेद |सविशेष ॥ अस्त्रशस्त्र दीन्हे घने दीन्हे मन्त्र अशेष ५८ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायां जानकीत्याग- वर्णननामत्रयस्त्रिंशत्प्रकाशः॥ ३३ ॥ सजीवमंत्र सों जीवनजल सींच्यो तब सीताजी उठी अत्र कहे या स्थानमें आपनो कौन दोष है जासों मोको तजी यह हो नहीं जानति इत्यर्थः ५४ । ५५ श्रोक कहे घर ५६ । ५७ । ५८ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकोजानकोजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद- निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायांत्रयस्त्रिंशत्प्रकाशः ॥ ३६॥ दोहा । अायो श्वान फिलादिको चौंतीसवें प्रकाश ॥ अरु सनाढयदिज आगमन लवणासुरको नाश १ ॥दोधक छेद ॥ एकसमय हरि धर्मसभा । बैठेहुते नरदेव प्रभा ॥ संग सबै ऋषिराजविराज । सोदर मंत्रिन मित्र न साजें २ कूकर एक फिखादेिहि अायो । दुंदुभि धर्मदुवार बजायो॥