पृष्ठ:रामचंद्रिका सटीक.djvu/३२५

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३२८ रामचन्द्रिका सटीक । केरो २२ ताहि तहां बहुभांति परोस्यो । केहूं कहूं नखमाहँ रह्यो स्यो॥ ताहि परोसि जहीं घर अायो । रोवत हों हँसि कंठ लगायो २३ चामरछंद ॥ मोहिं मातु तप्त दूधभात भोजकों दियो। वातसों सिराइ तात क्षीर अंगुली छियो। ध्यो द्रयो भष्योगयो अनेक नर्क वासभो। हौं भ्रम्यो अनेक योनि अवध प्रानि श्वान भो २४ दोहा ॥ वाको थोरो दोष |में दीन्हों दंड अगाध ॥ राम चराचर ईश तुम क्षमियो यह अपराध २५ लोक करेउ अपवित्र वहि लोक नरककोवास ॥ छुवै जो कोऊ मठपती ताको पुण्य विनास २६ ॥ विन दोष काहूको घात न करै १४ । १५ । १६ गजरथाश्वादि की गढ़ी कहे समूह जोरि यनकरिकै दियो औ मठदियो कृपा दुहूंओर लगति है अथवा मठधारिन की गढ़ी में जोरि कहे मिलाइकै कालंजर | दुर्ग जो प्रसिद्ध है ताको मपति कियो यह बाल्मीकीय रामायणमें लिख्यो है यथा “कालंजरे महाराज कौलपत्यं प्रदीयताम् । एतच्छुत्वा तु रामेण कौलपत्येभिषेचितः" १७ । १८ या जो मठपति है ताके प्रमाण को नहीं जानत १६।२०।२१।२२।२३।२४।२५।२६ ॥ रामायणे यथा “ब्रह्मस्वं देवद्रव्यं च स्त्रीणां बालधनं च यत् ॥ दत्तं हरति यो मोहात्स पचेन्नरके ध्रुवम् २७ स्कन्दपु- राणे यथा ॥ हरस्य चान्यदेवस्य केशवस्य विशेषतः ॥ मठपत्यं च यः कुर्यात्सर्वधर्मबहिष्कृतः २८ पद्मपुराणे यथा ॥ पत्रं पुष्पं फलन्तोयं द्रव्यमन्नं मठस्य च ।। योऽश्नाति स पचेद् घोरानरकानेकविंशतिः २६ देवीपुराणे यथाः ॥ अभोज्यं मठिनामन्नं भुक्त्वा चान्द्रायणं चरेत् ॥ स्पृष्ट्वा मठपति विप्रं सवासा जलमाविशेत् ३०" दोहा ॥ ौरी एक कथा कहाँ विकल भूपकी राम ॥ वहीं अयोध्या बसत है वंशकारके