रामचन्द्रिका सटीक । ३४७ करी सुनु पापिनके राइ २१ तोटकछंद ॥ सिगरे जगमांझ हँसावत है । रघुवंशिन पाप नशावत है ॥ धिक तोक्हँ तू अजहूँ जो जिये । खल जाइ हलाहल क्यों न पिये २२ ।। जूझ जूरे पर भले जीके भय सौं शत्रुको श्राइ मिलै १७ देववधू सीता .१८॥ १६॥ २०॥ २१॥ २२ ॥ कछुहै अब तो कहँ लाज हिये । कहि कौन विचार हथ्यार लिये ॥अब जाइ करीपकि आगि जरौ। गरुवांधिकै सागर बूडिमरौ २३ दोहा ॥ कहा कहौं हौं भरत को जानत है सब कोय ॥ तोसो पापी संग है क्यों न पराजय होय २४ बहुत युद्धभो भरतसों देव अदेवसमान ॥ मोहि महारथपर गिरे मारे मोहनबान २५ ॥ इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिद्विरचितायांभरतमोहनोनाम सप्तत्रिंशत्प्रकाशः॥ ३७॥ करीप सूख्यो गोवर विनुआ कंडा करि प्रसिद्ध है २३ । २४ । २५ ॥ इति श्रीमजगजननिजनकजानकीजानकीजानिप्रसादाय जनजानकीप्रसाद निर्मितायांरामभक्तिप्रकाशिकायां सप्तत्रिंशत्प्रकाशः ॥ ३७॥ दोहा॥ अडतीसयें प्रकाशमें अंगदयुद्ध वखान ॥ व्याज- सैन रघुनार्थको कुशलवश्राश्रमजान १ भरतहि भयो विलंब कछु आये श्रीरघुनाथ ॥ देख्यो वह संग्रामथल जूझिपरे सब साथ २ तोटकछंद ॥रघुनाथहि पावत अाइ गये । रण में मुनि बालक रूपरये ॥ गुणरूप सुशीलन सों रण में प्रति- बिंब मनो निज दर्पण में ३ मधुतिलकचंद ॥ सीतासमान मुखचन्द्र विलोकि राम | बूझ्यो कहां बसतहो तुम कौन
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