१।२ गुण औ रूप ३४८ रामचन्द्रिका सटीक । ग्राम ॥ माता पिता कवन कवनहि कर्म कीन । विद्या- विनोद शिप कोन्यहि अस्त्र दीन ४॥ औ शील स्वभावन सहित रणमें अर्थ रण करने में मानो दर्पण में आपने प्रतिबिंबही आइगये हैं जैसे दर्पण के निकट जातही दर्पण में मापनेही खभासदिलों युक्त आपने प्रतिबिंब पाइजात हैं, ताविधि रणभूमिरूपी दर्पण के निकट रामचन्द्र के आवतही रामचन्द्रहीके स्वभावादि सों युक्त प्रतिबिंबसम लव कुश आये इत्यर्थः ३ भाग्यवान पुत्र को मुख माता को ऐसो होत है “ धन्यो मातृमुखः सुतः-इति प्रमाणा" कहो कहे कौन स्थान में कर्म जातकर्मादि ४ ॥ कुश-रूपमालाछंद ॥ राजराज तुम्हें कहा मम वंश सों अब काम । बूझि लीन्ह ईश लोगन जीति के संग्राम ॥ राम ॥ हो न युद्ध करौं कहे विन विप्रवेष विलोकि ॥ वेगि वीर कथा कहौ तुम आपनी रिस रोकि ५ कुश ॥ कन्यका मिथिलेश की हम पुत्र जाये दोइ । बालमीकि अशेपकर्म करे कृपारस भोइ ॥ अस्त्र शस्त्र सबै दये अरु वेदभेद पढ़ाइ। बापको नहिं नाम जानत प्राजुलौं रघुराइ ६ दोधकछंद ॥ जानकिके मुख अक्षर आने । राम तहीं अपने सुत जाने । विक्रम साहस शील उचारे । युद्धकथा कहि श्रायुध डारे ७ राम ॥ अंगद जीति इन्हें गहिल्यावो। के अपने बल मारि भगावो ॥ वेगि बुझावहु चित्तचिताको । अाजु तिलोदक देहु पिताको ८ अंगद तो अँगअंगनि फूले । पौनके पुत्र कह्यो अति भूले । जाइ जुरे लवसों तरु लैक । बात कही शतखंडन कै॥ ५। ६ जानकी को नाम लीन्हों तासों औ अपने सहश विक्रम साहस शीलहूसों विचाख्यो कि हमारे ही पुत्र हैं. ७ हम तुमसों कहि राख्यो है कि कोऊ हमारे वंश में तुमसों युद्ध करिहै सो ये हमारेही पुत्र हैं तासों इनको
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