रामचन्द्रिका सटीक । करे के । भारे भिरे रणभूधर भूप न टारे टरे इभकोटि अरे कै॥रोषसों खड्ग हने कुश केशव भूमि गिरे न टरेहूं गरेकै राम विलोकि कहें रस अद्भुत खाये मरे नग नाग मरेकै १७ दोधकछंद ॥ वानर ऋक्ष जिते निशिचारी । सेन सबै यकवाण सँहारी॥ वाणविंधे सवही जब जोये। स्पंदन में रघुनंदन सोये १८ गीतिकाछंद ॥रणजोइकै सब शीश भूषण संग रहे जे भले भले । हनुमंत को अरु जामवंतहि वाजि सों प्रसि लै चले ॥ रणजीतिकै लव साथलै करि मातुके कुश पां परे । शिर सूंघि कंठ लगाय आनन चूमि गोद दुवौधरे १६ ।। इति श्रीमत्सकललोकलोचनचकोरचिन्तामणिश्रीरामचन्द्र- चन्द्रिकायामिन्द्रजिविरचितायांकुशलवजयवर्ण- नन्नामात्रिंशत्प्रकाशः॥३८॥ भैरव ऐसे जे भूरिभट हैं ते बलसों मिरे हैं सो इन भटन को कहे कैयौं याही परे कहे अति विकट खेत कहे युद्ध के लिये कार विधातें करे कहे बनायो है अर्थ त्रिकालज्ञ विधाता यह अति विकट युद्धभावी जानि के ताके लिये ऐसे प्रवल वीर आपने हाथसों बनायो है या युद्ध में येई वीर भिरे हैं और वीर न भिरिसक्ने इति भावार्थः अथवा बलसों खड़े जे खेत हैं तिनके कर कहे कर्ता अर्थ जिन रावणादि सो रण कीन्हों है ऐसे जे भैरव ऐसे भूरिभट हैं ते करे कहे अतिकठोर मारु मारु इत्यादि तार कहे उच्चस्वर के कहे करिकै रण में भिरे हैं कोऊ कादरस्वर नहीं बोलत इति भावार्थः औ भूधर पर्वतसम अचल जे भारे भूप हैं अथवा भूधर कहे भूमि के धरनहार अर्थ जेती भूमिधरै तेती कैसर न छोड़ें ऐसे जे भारे भूप हैं ते कोदिन इभ जे हाथी हैं निनको अरे कहे हठै करिकै अर्थ पगन में जंजी- रादि डारि जामें टरै नहीं ऐसे करके युद्ध में भिरे हैं ते भट औ भूपमरे के कटेहूँ अर्थ शिर कटिगयो है ताहूपर भूमि में न गिरे अर्थ जिनको कबंधहू लरत रह्यो औ तिन हाथिन को परे देखिकै अद्भुतरस युक्त द्वै रामचन्द्र कहत हैं कि नग जे पर्वत हैं तिनके खायें कहे खावां मारे हैं कि नाग कहे
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